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________________ काफी धनराशि लगी । इस घटना से ब्रिटिश सरकार हिल गयी, उसने इस घटना को अपने लिए एक चुनौती माना । सरकार ने मि. हार्टन की अध्यक्षता में एक विशेष पुलिस इकाई गठित की तथा शीघ्र ही रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों को पकड़ लिया । अजितप्रसाद जैन ने श्री बिस्मिल की वकालत करना स्वीकार कर लिया। इस सम्बन्ध में उन्होंने स्वयं लिखा है - 1926 में काकोरी षड़यंत्र का मुकदमा चला। मैंने रामप्रसाद बिस्मिल की निःशुल्क वकालत की। मैंने उसे सलाह दी कि वह काकोरी डकैती करना और क्रांतिकारी दल का सदस्य होना स्वीकार कर ले। मैं उसे प्राणदंड से बचा लूंगा, क्योंकि उसने किसी भी डकैती में किसी भी व्यक्ति की जानकर या नहीं की थी, किन्तु उसने मेरी सलाह नहीं मानी, परिणामतः मैंने उसकी व छोड़ दी और उसे फांसी हो गई। इस प्रकार श्री जैन ने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों में जहाँ तक हो सका, अपना सहयोग दिया। श्री जैन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की सेनेट के सदस्य रहे। यूनिवर्सिटी के नये विधान बनाने में उनका सहयोग रहा। इस कमेटी के भी वे वरिष्ठ सदस्य थे। कानपुर में असहयोग आन्दोलन के दौरान जैन समाज के नेता वैद्य कन्हैयालाल जैन सहित अन्य जैन अनुयायियों ने अपना योगदान दिया । कन्हैयालाल जैन 1920 में कानपुर नगरपालिका के सदस्य थे। 2 श्री जैन ने विदेशी कपड़े के बहिष्कार हेतु काफी प्रयास किया । स्थानीय कांग्रेस कमेटी ने उनके सहयोग से करीब 40 बजाजों से प्रतिज्ञा करायी कि वे विदेशी कपड़े नहीं मंगायेंगे तथा सदैव स्वदेशी कपड़ों का ही कारोबार करेंगे।'' कानपुर के जैन समाज के नवयुवकों ने 1921 में 'युवक चर्खा मंडल' की स्थापना की । इस मंडल के कार्यकर्ताओं ने नगर में विदेशी वस्त्रों की होली जलाने और खादी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। युवक चर्खा मण्डल में बाबू देवकुमार जैन, मनोहरलाल जैन, पद्मराज जैन प्रमुख रूप से कार्य करते थे । 104 कानपुर के प्रमुख उद्योगपति लाला लक्ष्मणदास जैन के पुत्र बाबूराम जैन एवं फूलचंद जैन ने कांग्रेस कमेटी के विभिन्न पदों पर रहकर 'स्वतंत्रता आन्दोलन' में भागीदारी की। लक्ष्मणदास जैन ने लाठी मोहाल (कानपुर) में एक धर्मशाला का निर्माण कराया। जिसका उद्घाटन 1920 में हुआ । यह धर्मशाला 'लक्ष्मणदास धर्मशाला' के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस धर्मशाला का उपयोग क्रांतिकारियों के गुप्त ठिकाने के रूप में किया जाता था । इस धर्मशाला में अनेकों बार चन्द्रशेखर आजाद, गणेशशंकर विद्यार्थी, भगत सिंह आदि क्रांतिकारी ठहरे। जैन परिवार ने उस धर्मशाला में एक गुप्त दरवाजा भी लगवाया हुआ था, जो कि एक सराय की तरफ खुलता था । सन् 1924 में भगत सिंह कानपुर आये । वे मुख्य रूप से रामनारायण बाजार में रहते 68 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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