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अपने सुव्यवस्थित तरीके और अपने ही इन्तजाम से भेजती थी। आश्रम की एक लड़की ने लाहौर कांग्रेस के अवसर पर लेडी वालिंटियर कोर में काम किया था। जब-जब दिल्ली में कांग्रेस हुई, तब-तब सारा का सारा आश्रम किसी न किसी तरह कांग्रेस की सेवा में लग जाता था। असहयोग आन्दोलन के दौरान महिला आश्रम की तीन लड़कियों को पुलिस की मार खानी पड़ी, एक लड़की को छः महीने की जेल भुगतनी पड़ी, जो लड़की जेल गई, वह बाल विधवा थी और जेल जाने के समय उसकी उम्र 18-19 वर्ष से ज्यादा नहीं थी।
सन् 1918 के जुलाई महीने में जब रामदेवी बाई के भाई (महात्मा भगवानदीन) बिजनौर में पकड़े गये, तो उनसे मिलने के लिए वह दौड़ी-दौड़ी बिजनौर जेल पहुंची। एक बार तो उनके भाई ने उनसे मिलने से इन्कार कर दिया, क्योंकि वह समझते थे कि उनका दिल कमजोर है और वह जेल में उन्हें हथकड़ियों और बेड़ियों में कैसे देखेंगी। (उन दिनों राजनैतिक कैदियों को सन् 1921 के असहयोग आन्दोलन की तरह कोई सुविधा प्राप्त न थी और उनके साथ मामूली डाकुओं जैसा बर्ताव किया जाता था। राजनैतिक कैदियों के पाँवों में डंडा-बेड़ियाँ डाली जाती थी और रात को कितने ही कैदी एक साथ एक जंजीर में बाँध दिये जाते थे), परन्तु जेल सुपरिटेंडेंट के कहने सुनने पर वह माने और जब वे रामदेवी बाई से मिले, तो उन्होंने देखा कि उनके चेहरे पर न कोई घबराहट थी, न कोई उदासी और आँख भीगने की तो कोई बात ही न थी। रामदेवी बाई ने अपने भाई को और प्रोत्साहित किया तथा देश की तत्कालीन स्थितियों की चर्चा के अलावा और कोई बात न की। महात्मा भगवानदीन उस समय पंजाब मार्शल लॉ में पकड़े गये थे।
जैन संदेश ने महात्मा भगवानदीन के विषय में लिखा था- राष्ट्रीय क्षेत्र में सार्वजनिक रूप से केवल दो ही व्यक्ति 'महात्मा' कहे जाते हैं-गाँधी जी और भगवानदीन जी। निश्चय ही वे अपने ढंग के अनोखे महात्मा हैं। भगवान दीन जी सबसे पहले 1918 में जेल गये, तब से लेकर उनकी राष्ट्रीय सेवायें दिनों दिन बढ़ती ही गई। इस प्रकार रामदेवी बाई तथा महात्मा भगवानदीन ने देश सेवा को अपना लक्ष्य बनाया।
सन् 1923 में नागपुर सत्याग्रह में भाग लेने के कारण महात्मा भगवानदीन को नागपुर जेल में बंदी बनाया गया, वहाँ उन्होंने लगातार 56 दिन तक उपवास किया और वह सूखकर काँटा हो गये। उनके आत्म विश्वास और हिम्मत को देखकर
अब कैदी भी प्रोत्साहित हुए। उसी दौरान रामदेवी बाई के पुत्र जैनेन्द्र कुमार होशंगाबाद जेल में थे। जेल में आन्दोलन करने के कारण उन्हें डंडा और बेड़ियों की सजा और दी गयी। ये खबरें रामदेवी बाई को मिली, परन्तु वे इन खबरों से बिल्कुल भी विचलित न हुई तथा दिल्ली के आश्रम की लड़कियों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका :: 51