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की तथा बड़ी संख्या में जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की । साहू जैन ट्रस्ट, साहू जैन चैरिटेबिल सोसायटी ने सदैव मानव सेवा की मिशाल पेश की 13
साहू शान्तिप्रसाद जैन ने भारतीय भाषाओं, साहित्य, संस्कृति के विकास में अपना अद्वितीय योगदान दिया। अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद् के बारहवें अधिवेशन के अवसर पर दिसम्बर 1943 में वाराणसी में कुछ अग्रणी भारतीय विद्याविदों ने साहू शान्तिप्रसाद जैन से एक ऐसे संस्थान की स्थापना का अनुरोध किया, जो संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत, पाली और अपभ्रंश की साहित्य-निधि का अनुसंधान एवं प्रकाशन कर सके। उत्तर में भारतीय विद्या और संस्कृति के प्रति अपने हार्दिक लगाव के अनुरूप ही साहू जी ने भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना का निर्णय लिया । 14
सन् 1944 में भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना कर साहू जी ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रमा जैन के साथ मिलकर अनेक साहित्यिक योजनाओं को चलाया । भारतीय ज्ञानपीठ के अंतर्गत कई ग्रन्थमालाओं की स्थापना की गयी। इनमें मूर्ति देवी ग्रन्थमाला के अंतर्गत भारतीय चिन्तन, संस्कृति और धर्म के अनेक दुर्लभ ग्रन्थों का वैज्ञानिक पद्धति से सम्पादन करके प्रकाशन किया जाता है । इन ग्रन्थों का प्रकाशन संस्कृत, प्राकृत, पालि, तमिल, अपभ्रंश, कन्नड़, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में होता है । इसी प्रकार ज्ञानपीठ द्वारा संचालित माणिक चन्द्र ग्रन्थ माला, कन्नड़ ग्रन्थमाला, लोकोदय ग्रन्थमाला, राष्ट्रभारती ग्रन्थमाला द्वारा लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक ग्रन्थों का प्रकाशन किया जाता है । 15
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रत्येक वर्ष 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' दिया जाता है । जो वर्तमान में भी देश का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार माना जाता है । इस पुरस्कार के अंतर्गत ग्यारह लाख रुपये, वाग्देवी की मूर्ति एवं प्रशस्ति प्रदान की जाती है ।" इस प्रकार साहू जैन परिवार ने देश के सामाजिक एवं साहित्यिक विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
नहटौर (बिजनौर) में 12 मार्च, 1941 को जैन समाज की एक बड़ी कांफ्रेंस बुलायी गयी थी, जिसकी अध्यक्षता बाबू उग्रसैन जैन ( प्रबन्धक - जैन इण्टर कॉलेज बड़ौत ने की । इस सम्मेलन में जैन समाज के प्रतिष्ठित नेताओं पं. कैलाशचन्द जैन, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, पं. रामलाल जैन, बाबू नन्दकिशोर जैन (रिटायर्ड डिप्टी कलेक्टर) आदि की उपस्थिति में कई महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पास किये गये, जिनमें पहला प्रस्ताव था, जिले में प्रत्येक स्थान पर पाठशालाएँ तथा वीर सेवक संघ स्थापित किये जायें तथा दूसरे प्रस्ताव में पास किया गया कि बिजनौर जिले का कोई भी जैन अपने पुत्रों के विवाह में वधू पक्ष से किसी प्रकार भी दहेज नहीं लेगा । 17
इस सम्मेलन के निर्णय के अनुसार नहटौर, स्योहारा आदि स्थानों पर जैन
उत्तरप्रदेश के जैन समाज... :: 33