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श्री कुसुम की रचनायें 'मनस्वी, शिक्षा सुधा, दीदी' पत्रिका एवं साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपने लगी। एक सभा में जिसमें अंग्रेज कलक्टर भी उपस्थित थे, कवि 'कुसुम' ने देशभक्ति से ओतप्रोत और भारतीय जनता को सम्बोधित करते हुए एक गीत पढ़ाजाग, जाग रे जाग
जाट कात्तिा और हाथ पसारे क्या तकता है? कति म त काणा
मन चाही तू कर सकता है, तोड़ तोड़ रे माँ के बन्धनमा
गतिमानी मस्या लिपटे काले नाग।6F
क इस प्रकार के गीतों से जैन कवि काफी प्रसिद्ध हो गये। आचार्य क्षेमचन्द्र सा'सुमन' और कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने उनकी रचनाओं को सराहा। 14 अगस्त से 21 नवम्बर 1942 तक श्री कुसुम भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल में रहे। वहाँ भी उन्होंने अपने गीतों से कैदी भाइयों में उत्साह का संचार किया। उन्होंने लिखा
बालो फिर जंजीरें बोल उठीं, र एलोहा लेने इन्सान चले,
भारत के वीर जवान चले, सन् सत्तावन की याद लिये, फिर से तकदीरें बोल उठीं।
शांतिस्वरूप जैन ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान काफी संख्या में गीतों की रचना की। इन रचनाओं को स्वतंत्रता के बाद प्रकाशित भी किया गया।
भगवत्स्व रूप जैन 'भगवत' आगरा जनपद के एतमादपुर नामक कस्बे में सन् 1911 में जन्मे भगवत्स्वरूप जैन ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान बहुविध साहित्य की रचना की। उनकी कविताएँ, कहानियाँ और नाटकों ने तत्कालीन समाज को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत किया और साथ ही सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में भी अपना योगदान दिया। उनकी रचनाएँ-'चाँद, अभ्युदय, विचार, सचित्र भारत, सुमित्र, हिन्दुस्तान, माया, मनमोहन तथा अनेकान्त'
आदि अनेक पत्रों में प्रकाशित होती थी। श्री भगवत् की पहली पुस्तक 'झनकार' सन् 1934 में लखनऊ से प्रकाशित
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200 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान