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मोहन हमारे हिन्द का अब भी हमारे पास है । है देह केवल कैद में, उसका यहाँ पर वास है ।। यह युद्ध मिट जायेगा, सरकार ऐसा मानती । होंगी अनेकों शक्तियाँ प्रगटित नहीं यह जानती । । "42
इसी प्रकार की अनेक मार्मिक कवितायें 'जैनमित्र' के मुख पृष्ठ पर परमेष्ठीवास
जैन द्वारा लिखी जाती थी । एक अन्य कविता है
भारत माँ के लाल पेट पर पत्थर रखकर सोते हैं । नन्हें नन्हें बालक निशदिन भूखे प्यासे रोते हैं । । कितने ही तो तड़प तड़पकर प्राण अन्न बिन खोते हैं । इतने पर भी नाथ! आज अन्याय अनेकों होते हैं । । । चिथड़े नहीं लाज ढ़कने को ऐसी कंगाली आई | चौतरफा से भगवन्! इस पर विपत्ति घटा कैसी छाई ।। नष्ट भृष्ट कर दिया गुलामी ने सोने का हिंदुस्तान | ठुकरा रहे स्वारथी इसको जिसका था जगभर में मान ।। 13
'जैन मित्र' स्वतंत्रता आन्दोलन के समय देश की आवाज बन गया। जैन समाज के नागरिक पत्र से प्रेरणा लेकर आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े । एक जैन बन्धु ने जैन मित्र को एक पत्र लिखा, जिसमें उसने लिखा कि मेरा नाम भी सत्याग्रहियों की सूची में लिख लें, मैं एक जैनी की हैसीयत से ऐसे अहिंसात्मक आन्दोलन में भाग लेना परम् सौभाग्य समझता हूँ, जिसके सफल हो जाने पर करोड़ों मनुष्यों के दुःख दूर हो सकते हैं। आगे उसने लिखा- मेरी पत्नी ने जो कुछ वर्षों पहले गहनों और विलायती कपड़ों से लदी हुई थी, अब सब छोड़ दिया है और जहाँ हमारे यहाँ ओसवाल मारवाड़ी जैन समाज में परदे का घोर साम्राज्य है, वहाँ तारीख 26 जनवरी, 1930 के स्वाधीनता के जुलूस में उसने परदा प्रथा को तोड़कर स्वयंसेविका की हैसियत से भाग लिया। मैं आपको यह भी विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि इस आन्दोलन में जब कभी अंग्रेज भाइयों की गोली का शिकार होने का मुझे अवसर प्राप्त होगा, तो आप मुझे पीछे हटते न पायेंगे ।"
इस व्यक्ति की भावना देखकर लगता है कि इसके हृदय पर राष्ट्रीय आन्दोलन का कितना अधिक प्रभाव पड़ा। इसी प्रकार अनेक जैन अनुयायी अपना नाम जैन मित्र में लिखवाते थे और आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने को तत्पर रहते थे। इस दौरान जैन सेठ भी अपना कर्तव्य निभाने में पीछे नहीं हटे । 'जैन मित्र' का एक समाचार था - सत्याग्रह प्रेमी सेठ हीरालाल जैन ( राधौगढ़ ) सूचित करते हैं कि जो स्थानीय भाई सत्याग्रह संग्राम में सम्मिलित हुए हैं या होना चाहते हैं, वे अपने नाबालिग बच्चों को हमारे पास भेज दें। उनके वस्त्र, भोजन, पढ़ने आदि की
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 177