________________
लिए है, तब जैन साधुओं का अहिंसा व त्यागमय संघ आत्मस्वतंत्रता के लिए होता है । इतना ही अंतर है । जैसे - जैन संघ में संयम होता है, वैसा संयम इस संघ में था। जैसे जैन साधु संघ जिस ग्राम में ठहरता है, उस ग्राम को भारभूत न होते हुए जो भोजन पान मिलता है, उसे संतोष पूर्वक ले लेता है । वैसे ही इस गाँधी संघ ने स्वयं भोजन पान का प्रबंध न किया । जहाँ यह संघ पहुँचा, वहाँ के ग्रामवालों ने जो भोजनपान दिया, उसी को संतोषपूर्वक ग्रहण किया । जैसे जैन साधु संघ जिस ग्राम के बाहर ठहरता है, वहाँ के ग्रामवासियों को सम्यक धर्म का उपदेश देकर सच्चा धर्म श्रद्धान कराता व मदिरा माँसादि त्याग कराता है, वैसे ही इस गाँधी संघ ने जहां यह ठहरा, वहाँ देश स्वातंत्रय का उपदेश दिया, लोगों से मादक वस्तुएं छुड़ाई व खादी का प्रचार किया। वास्तव में इस गाँधी संघ की पैदल यात्रा दुनिया की दृष्टि में आश्चर्यजनक सी हो रही है । हमें तो यह सच्चे जैन साधु संघ की यात्रा की स्मृति करा रही है।
'जैन मित्र' ने आगे लिखा - तारीख 12 मार्च, 1930 को यह संघ चला था, तारीख 6 अप्रैल को यह डांडी में आया । इतने कड़े प्रवास के बाद अहिंसात्मक सत्याग्रह का प्रारम्भ महात्मा गाँधी ने सबसे पहले किया, अर्थात नमक को बनाना शुरू कर दिया व इनके साथियों ने भी ऐसा ही किया। 6 अप्रैल का दिन भारत के इतिहास में एक बड़ा भारी स्मृति दिवस माना जायेगा, जब महात्माजी ने अहिंसात्मक युद्ध की नींव भारतीय स्वतंत्रता के लिए डाली | महात्मा गाँधी जी के हाथ लगाते ही चारों तरफ देश में देशहितैषी स्वयंसेवक नमक बनाने लगे। उधर भारतीय सरकार भी दमन नीति का शस्त्र लेकर मैदान में आ डटी और नेताओं को पकड़-पकड़कर जेल भेजने लगी। जैन समाज के नवयुवक भी इस आन्दोलन में जेल जा रहे हैं, यह हर्ष की बात है । अंत में आवश्यकता यही है कि लाखों देश सेवक महात्मा गाँधी के अनुयायी होकर इस युद्ध को सफल बनायें । हम महात्मा गाँधी के आत्मबल त्याग अहिंसाभाव की सराहना करते हुए यह मंगल कामना करते हैं कि वीरगाँधी की भावना सफल हो, यह भारत स्वतंत्र हो । 40
'जैन मित्र' ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान संयुक्त प्रान्त के जैन अनुयायियों के सत्याग्रह के समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किये। इन समाचारों का विस्तारपूर्ण वर्णन अध्याय तीन, चार एवं पाँच में किया जा चुका है। जैन मित्र निरंतर लिखता रहा तथा जैन अनुयायियों पर उसका व्यापक प्रभाव भी पड़ा ।
पंडित परमेष्ठीदास जैन ने जैन महिलाओं से आह्वान किया कि वे संगठन बनाकर मद्यपान निषेध और विदेशी वस्त्र बहिष्कार का कार्य करें। जैन मित्र में उन्होंने लिखा कि जैन महिलाओं को दुकानदारों को समझाना होगा कि भाई ! ऐसे बुरे व्यापार को छोड़ दो। वह दुकान वाले अवश्य ही इस बात को स्वीकार करेंगे।
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 175