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जी के अहिंसा, सत्याग्रह और स्वदेशी आन्दोलन से रहा । उसने अंग्रेजों की हर उस नीति का विरोध किया, जिसमें भारतीयों के प्रति अन्याय या भेदभाव था । एनीबेसेन्ट, तिलक, गाँधी जी के विचारों को वह प्रकट करता था । 'जैन मित्र' ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समर्थन हेतु जनजागरण चलाया । पत्र में प्रकाशित सम्पादकीय लेख, समाचार, कविताएं आदि देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत होते थे। पंडित परमेष्ठीदास जैसे कार्यकर्ता तो जेलों में भी गये और कपाड़िया जी आजीवन खद्दरधारी तथा स्वतंत्रता के समर्थक रहे ।
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान 'जैन मित्र' ने राष्ट्रीय चेतना की आगवानी की। कांग्रेस की प्रशंसा करते हुए पत्र ने लिखा- कांग्रेस के द्वारा सबसे उत्तम कार्य यह हुआ है कि भारत वर्ष के विविध प्रान्तों के निवासियों में एकता का संचार हुआ । 20 वर्ष के पहिले एक प्रान्त के निवासी दूसरे प्रान्त के निवासियों से स्नेह सम्बन्ध नहीं कर पाते थे, परन्तु अब प्रतिवर्ष पृथक-पृथक प्रान्तों में कांग्रेस अधिवेशन होने के कारण यह त्रुटि दूर हो गयी है । विविध प्रान्तों के देश हितैषी भाई एक-दूसरे से मिलकर देश चिन्ता में कुछ समय व्यस्त रहते हैं । अनेक स्थानों में कांग्रेस के अधिवेशन होने से लोग समझने लगे हैं कि कांग्रेस के कार्यकर्ता देश का कल्याण करने के लिए सरकार से उचित स्वत्व मांगते हैं । सरकार के कानों तक अपनी पुकार पहुँचाने के लिए इस समय कांग्रेस सरीखा कोई भी साधन नहीं है । 4
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'जैन मित्र' ने लाला लाजपतराय के बलिदान पर सम्पादकीय लिखा, जिसका शीर्षक था - 'हां! जैन वैश्यकुली लाला लाजपतराय ' इसके अंतर्गत पत्र ने लिखा- पंजाब केसरी लाला लाजपतराय 63 वर्ष की आयु में इस शरीर को त्यागकर परलोक सिधार गए। लालाजी का जन्म अग्रवाल कुल में हुआ था। उनका कुल धर्म जैन था । लाल जी ने देश की कितनी सेवा की, इसका उल्लेख भला कौन कर सकता है? अंग्रेज पुलिस ऑफिसर उनकी इस देशभक्ति से चिढ़ गये, इसलिए उन्होंने लाला जी के ऊपर ऐसी लाठियों की मार दी, जिसका असर उनके जीवन के वियोग में कारण बन गया। वास्तव में देखा जाये, तो उन्होंने अपना जीवन ही देश के ऊपर न्यौछावर कर दिया । बालपन से लेकर मरण तक उनका जीवन चरित्र परोपकारिता के रस से भरपूर
। उनके जीवन की सेवा अनुकरणीय है । हम अपने सच्चे हृदय से प्रार्थना करते हैं कि लाला जी की आत्मा को सुख-शांति की प्राप्ति हो तथा उनके सुपुत्रों के साथ संवेदना प्रकट करते हुए यह प्रार्थना करते हैं कि वे भी परोपकार वृत्ति को धारण करें तथा इस जैन धर्म को भी समझें और इससे लाभ उठायें | 35
'जैन मित्र' ने अपने आगामी अंक में लिखा- लाला लाजपतराय जैन वंश के सूर्य थे। जिन्होंने देश की सेवा में वीर भगवान सदृश अपना सुयश स्थिर किया है। जैन कौम के नवयुवकों को लाला जी की देशसेवा का अनुकरण करना चाहिए और
170 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान