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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ने अपनी विशेष भूमिका का निर्वाह किया। इनके माध्यम से जनता ने न केवल देशभक्ति का पाठ सीखा, बल्कि अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का भी संकल्प लिया। जैन समाज ने विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, सन् 1937 में 'जैन मित्र' में प्रकाशित सूची के अनुसार जैन समाज के पत्रों की संख्या 74 थी।
अगरचन्द नाहटा ने अपनी सूची में तत्कालीन 59 पत्रों का संक्षिप्त परिचय दिया था। जैन सिद्धान्त भास्कर की सूची के अनुसार जैन समाज के भूतकालीन पत्रों की संख्या 105 तथा चालू पत्रों की संख्या 66 थी। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन द्वारा 1949-50 ई. में तैयार की गई जैन पत्र-पत्रिकाओं की सूची में जो कई स्थानों से प्रकाशित हुई है, के अनुसार 166 पूर्व प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं (90 दिगम्बर जैन तथा 66 श्वेताम्बर जैन व 10 अन्य जैन संप्रदाय) तथा 84 तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं का विवरण मिलता है। चौरासी तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दी की 50, गुजराती 16, मराठी 3, कन्नड़ 2, अंग्रेजी 2, उर्दू 1, हिन्दी-गुजराती 7, हिन्दी मराठी 1, हिन्दी उर्दू 1 और हिन्दी अंग्रेजी की 1 पत्र-पत्रिकाएं शामिल हैं। इनकी प्रकाशन अवधि साप्ताहिक 16, पाक्षिक 16, मासिक 45, त्रैमासिक 5 तथा अर्द्धवार्षिक 2 हैं। इस प्रकार जैन समाज द्वारा बड़ी संख्या में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया जाता था।
तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के जैन समाज ने भी अग्रणी होकर पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन, संचालन और संपादन किया। जैन संत ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद के अथक परिश्रम एवं प्रेरणा से संयुक्त प्रान्त में अनेक जैन पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। अन्य जैन संस्थाओं ने भी अपने पत्रों का प्रकाशन किया। इन पत्र-पत्रिकाओं में सबसे पुराना पत्र 'जैन गजट' को माना जाता है। इसका प्रकाशन दिसम्बर 1895 से लेकर आज तक निरंतर चालू है।'
____ 'जैन गजट' के प्रथम अंक के मुख पृष्ठ पर उल्लेख मिलता है कि 'जैन गजट बाबू सूरजभान वकील के प्रबंध से देवबन्द जिला सहारनपुर से प्रकाशित होता है।
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