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रूप से सरकार विरोधी कार्यकलापों में भाग लिया। साहू परिवार के नवयुवक मूलेशचन्द्र जैन ने भी इस दौरान जेल यात्रा की।।29
इलाहाबाद, लखनऊ और कानपुर जिलों में भी जैन समाज द्वारा अगस्त क्रांति में भाग लेने के उल्लेख मिलते हैं। इलाहाबाद के दारानगर कस्बे के ताराचंद्र जैन ने पिछले आन्दोलन की भाँति इस आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया। श्री जैन को इस दौरान इलाहाबाद जिला कांग्रेस कमेटी का वरिष्ठ उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उन्होंने इस आन्दोलन में भाग लेनेवाले नवागंतुक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया तथा उन्हें आवश्यक सुविधायें उपलब्ध करायी। उन्होंने लम्बे समय तक लालबहादुर शास्त्री, डॉ. कैलाशनाथ काटजू आदि नेताओं के साथ कार्य किया। 90 भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रारम्भ होते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा 9 महीने कड़ी कैद की सजा दी गई। जेल में श्री जैन ने बंदी साथियों के लिए आवश्यक चीजों की माँग को लेकर 17 दिनों तक अनशन किया। 1943 में वे सजा पूरी करके जेल से बाहर आये। बाहर आते ही उन्होंने पुनः सक्रियता प्रारम्भ कर दी। सरकार ने 06.08.1943 को उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया। उन्हें इलाहाबाद के नैनी सेन्ट्रल जेल में 14 दिनों तक नजरबंद रखकर काफी यातनायें दी गयी।32 इलाहाबाद निवासी भगवानदास जैन पत्र देवीप्रसाद जैन ने भी भारत छोडो आन्दोलन में अपना सक्रिय सहयोग दिया। आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1942 में 10 महीने की सजा दी गयी। श्री जैन को भी नैनी सेन्ट्रल जेल में रखा गया था। 33
लखनऊ निवासी ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद ने 'जैन मित्र' में 'देशसेवा' शीर्षक से 1940 में अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने लिखा-'भारत की दशा दयाजनक है, देशसेवा धर्म है, कठिन व्रत है। यह एक ऐसा यज्ञ है, जिसमें अपने को होम देना होता है।' ब्रह्मचारी जी ने अंतिम समय तक जैन समाज को देश के लिए कार्य करने को प्रेरित किया। 1941 के अन्त में वे बहत अस्वस्थ हो गये और 10 फरवरी 1942 को ब्रह्मचारी जी ने इस संसार को छोड़ दिया। उनकी अंतिम यात्रा में उनकी भावना के अनुरूप उन्हें स्वदेशी वस्त्र पहनाये गये। लखनऊ की गलियों में अपार जनसमूह उनकी शवयात्रा के साथ खद्दर के तिरंगे झंडे लहराता हुआ चल रहा था। इस प्रकार उन्होंने प्रारम्भ से लेकर अंत तक राष्ट्र के लिए कार्य किया।
कानपुर में इस आन्दोलन के दौरान जनता ने हिंसक रूप धारण करके सरकारी तंत्र को नष्ट करने के लिए कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। मोहम्मदपुर इलाके में स्थित इंस्पेक्शन हाऊस में आग लगा दी गयी। बिधनू सर्कल में जिलेदार के ऑफिस पर आक्रमण करके उसे नष्ट करने का प्रयास किया गया। 23 अगस्त 1942 को कानपुर के निकट एक गाँव भोगनीपुर में क्रांतिकारियों ने पंचायत के कागजों में आग लगा दी और गाँव के मुखिया तथा चौकीदार को इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया।
146 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान