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और सुबह ब्रह्ममुहूर्त होने से पहले ही उन्हें घर-घर वितरित करा दिया जाता। सरकार ने इन समाचार पत्रों को रोकने के लिए अपनी तमाम शक्ति लगा दी, परन्तु वह अपने इरादे में कामयाब नहीं हो सकी। पुलिस जब निराश हो गयी, तो उसने अपना गुस्सा हॉकरों पर उतारना शुरू कर दिया। जो हॉकर मिलता, उसको पकड़कर पुलिस बहुत मारती और उसके बाद उसे हवालात में बंद कर दिया जाता । 59
महेन्द्र जी के साथ बाबू कपूरचंद जैन, नेमीचन्द जैन मित्तल, मानिकचंद जैन, गोर्धनदास जैन, प्रतापचंद जैन, गोविन्दराम जैन आदि भी गुप्त रूप से इन समाचार बाबू कपूरचन्द जैन पत्रों में दिन-रात परिश्रम करते थे। महावीर प्रेस तथा साहित्य रत्न भण्डार उनका प्रमुख अड्डा था ।
महेन्द्र जैन ने अपने प्रेस में 'लाल पर्चे' के नाम से एक बड़ा सूचना पत्र छापा, जिसमें कांग्रेस के 8 अगस्त 1942 को हुए बम्बई अधिवेशन के समाचार तथा गाँधी जी के विचार प्रकाशित किये गये थे । इस पर्चे में अंग्रेजों के खिलाफ भी खुलकर लिखा गया। इस लाल पर्चे को आगरा में घर-घर तक पहुँचाया गया। इस पर्चे को पढ़कर जनता में जोश की लहर फैल गयी । यह पर्चा आगरा के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी वितरित किया गया। सरकार ने पर्चे छापने के अपराध में महेन्द्र जैन को गिरफ्तार कर लिया और 2 साल तक बंद रखा। उ. प्र. सूचना विभाग के अनुसार श्री जैन को 9 सितम्बर, 1942 को नजरबंद कर दिया गया। 2 महेन्द्र जी के साथी बाबू कपूरचंद जैन जो महावीर प्रेस के मालिक थे, अपने प्रेस से 'आजाद हिन्दुस्तान' पत्र का प्रकाशन करते थे। सरकार द्वारा पिछले आन्दोलन के दौरान उनकी प्रेस को बंद कर दिया गया था, परन्तु श्री जैन भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर सक्रिय हो गये। इस बार उन्होंने क्रांतिकारियों को अपनी प्रेस के एक हिस्से में बैठाने की भी व्यवस्था कर दी। परिणामस्वरूप उनका प्रेस क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन के लिए जाना जाने लगा। शीघ्र ही पुलिस ने इनकी तलाश शुरू कर दी, परन्तु श्री जैन पुलिस के हाथ नहीं आये और 1 साल तक भूमिगत रहे । भूमिगत रहकर भी वे बराबर आगरा के आन्दोलन पर नजर रखते रहे ।
नेमीचंद जैन (मित्तल) ने सिंहनाद के प्रकाशन का कार्य अपने हाथ में लेकर जन जागरण का कार्य किया । सिंहनाद में अंग्रेजी सरकार की निंदा खुले शब्दों में की जाती थी । यह पत्र साइक्लोस्टाइल था और इसके वितरित करने की योजना भी
भारत छोड़ो आन्दोलन में जैन समाज का योगदान :: 133