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________________ होने वाले अवतारों में से एक अवतार ऋषभदेव भी है। इससे पता चलता है कि वेदों के गृहस्थ प्रधान युग में वैराग्य, अहिंसा और तपस्या के द्वारा धर्मपालन करनेवाले जो अनेक ऋषि थे, उनमें ऋषभदेव का अन्यतम स्थान था और उनकी परम्परा में जो लोग अहिंसा तथा तपश्चर्या के मार्ग पर बढ़ते रहे, उन्होंने जैन धर्म का पथ प्रशस्त किया। जैन पन्थ के अन्तिम तीर्थकर महावीर वर्धमान हुए। उन्होंने अपने जीवनकाल में ही जैन धर्म की नींव भली-भाँति पुष्ट कर दी और जब उनका निर्वाण हुआ, तब जैन धर्म पूर्ण रूप से संगठित और सक्रिय था। आज जैन मतावलम्बियों में अधिक संख्या उन्हीं की है, जो व्यापारी हैं। यह भी जैन धर्म के अहिंसावाद का ही परिणाम है। जैन साधु इस चिन्ता में बहुत अधिक पीड़ित रहते थे कि कहीं उनके हाथों किसी जीव का नाश न हो जाये। मगर कृषि में तो खेत जोतने से जीव हिंसा होती ही है। इस हिंसा से घबराकर जैनियों में कृषि को छोड़कर व्यापार पर जीने की प्रथा चल पड़ी। दक्षिण भारत में जैन धर्म का जो प्रचार हुआ, उससे भारत की एकता में और भी वृद्धि हुई। जैन मुनियों और साहित्य के साथ संस्कृत के बहुत से शब्द दक्षिण पहुँचे और वे मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं में मिल गये। जैन समाज ने दक्षिण में बहुत सी पाठशालाएँ भी खोली थी। आज भी कन्नड़ इलाके में बच्चों को अक्षरारम्भ कराते समय 'ॐ नमः सिद्धम्' यह पहला वाक्य पढ़ाया जाता है, जो जैनों के नमस्कार मंत्र का वाक्य है। गुजरात की जनता पर जैन शिक्षा (अहिंसा और सादगी) का आज भी अच्छा प्रभाव है तथा यह भी कोई आकस्मिक बात नहीं है कि अहिंसा, उपवास और सरलता के प्रबल समर्थक गाँधी जी गुजरात में ही जन्मे। महात्मा गाँधी के जीवन पर जैन धर्म की अमिट छाप थी। फ्रेंच भाषा के विख्यात लेखक और शांतिवादी चिंतक श्री रोमा रौलाँ जो नोबल पुरस्कार विजेता थे और महात्मा गाँधी के परम् मित्र भी थे, ने अपनी पुस्तक 'महात्मा गाँधी' में स्पष्ट लिखा है कि - "His parents were followers of the Jain School बचपन में गाँधी of Hinduism, which regards ahimsa, the doctrine of non-injury to any form of life, as one of its basic principles. This was the doctrine that Gandhi was to proclaim victoriously throughout the world. Jainism believes that the principle of love, not intelligence, is the road that leads to God." 10 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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