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________________ अथवा सक्रिय अहिंसा। सकारात्मक अहिंसा का मूल लक्षण प्राणी मात्र के प्रति सक्रिय प्रेम की भावना है। 'सक्रिय प्रेम' का अर्थ है अपने से अधिक दूसरों को प्रेम करना। गांधी के शब्दों में-'वास्तविक प्रेम उन व्यक्तियों से प्रेम करना है जो तुमसे घृणा करते हों, अपने उस पड़ौसी से प्रेम करना, जिस पर तुम्हें भले ही विश्वास नहीं हो.............. । उन्होनें सकारात्मक अहिंसा को 'प्रेम की पराकाष्ठा' माना है।' गांधी के अनुसार अहिंसा सर्वोच्च नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति की प्रतीक है उसके प्रमुख तीन रूप हैं। 1. जागृत अहिंसा-Enlightend Non-violence 2. औचित्यपूर्ण अहिंसा-Reasonable Non-violence 3. भीरूओं की अहिंसा-Non-violence of cowardsi75 जागृत अहिंसा वह है जो व्यक्ति में अन्तर्रात्मा की पुकार पर स्वाभाविक रूप से अपनाई जाती है इसे व्यक्ति अपने आंतरिक विचारों की उत्कृष्टता अथवा नैतिकता के कारण स्वीकार करता है। इस प्रकार की अहिंसा में असम्भव को भी संभव में बदल देने की अपार शक्ति निहित होती है। औचित्य पूर्ण अहिंसा वह है जो जीवन के किसी क्षेत्र में विशेष आवश्यकता पड़ने पर औचित्यानुसार एक नीति के रूप में अपनाई जाए। यद्यपि यह अहिंसा दुर्बल व्यक्तियों की है, पर यदि इसका पालन ईमानदारी और दृढ़ता से किया जाए तो काफी शक्तिशाली और लाभदायक सिद्ध हो सकती है। 'भीरूओं की अहिंसा डरपोक और कायरों की अहिंसा है। कायरता और अहिंसा, पानी तथा आग की भांति एक साथ नहीं रह सकते।'305 गांधी ने कायरता को हिंसा से भी बुरा माना। वे कहते यदि मुझे दोनों में से एक को चुनना हुआ तो मैं निश्चित ही हिंसा को चुनूँगा। अहिंसा गांधी का साध्य थी पर इसकी अखंड प्राप्ति मानव जीवन में संभव नहीं है अतः अधिकाधिक अहिंसा का पालन ही मानव-जीवन का लक्ष्य है। भावात्मक शुद्धता के आधार पर अहिंसा की त्रिपदी महत्वपूर्ण हैं वीरों की अहिंसा-इसे नैतिक आस्था के आधार पर अपनाया जाता है न कि अपनी असहाय अवस्था के कारण। यह अहिंसा का सर्वाधिक शक्तिशाली रूप है। यह अपने अनुयायियों में सभी प्रकार की विपदाओं का सामना करने का साहस उत्पन्न कर देती है। ऐसी अहिंसा का धारक अकेला ही सारे संसार को चुनौती दे सकता है तथा उसमें परिवर्तन ला सकता है। नीतिगत अहिंसा-अहिंसा को नीति (Policy) का विषय मानकर व्यावहारिकता की दृष्टि से अपनाये जाने पर 'नीतिगत अहिंसा' कहा जाता है। इसे 'दुर्बलों की अहिंसा' अथवा 'निष्क्रिय प्रतिरोध' भी कहा जाता है। इसमें विरोधी पर हिंसा का प्रयोग स्वयं की दुर्बलता के कारण नहीं किया जाता, किन्तु अनुकूल अवसर होने पर हिंसा का प्रयोग किया जा सकता है। 1946-1947 में हिन्दू-मुस्लिम दंगों को देखकर गांधी ने भारत की अहिंसा को इस प्रकार का बतलाया था। कायरों की अहिंसा-यह अहिंसा का निकृष्ट प्रकार है और वस्तुतः छिपे हुए रूप में हिंसा ही है। कायर लोग अपने शत्रु से घृणा करते हैं और उसे अधिकतम हानि पहुँचाना चाहते हैं, परन्तु अपने शत्रु पर हिंसात्मक प्रहार करने का साहस ही नहीं रखते। वे ऐसी निष्क्रिय हिंसा या कायरतापूर्ण अहिंसा को अपनाते हैं।" अहिंसा के ये रूप प्रगतिशीलता के द्योतक हैं। उनमें अहिंसा विचार को आदर्श और परिस्थिति के अनुरूप प्रकट करने की अद्भुत शक्ति थी। वे अहिंसा को मात्र सिद्धांतवादी 84 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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