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________________ को श्रेष्ठ माना। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जिस कौम या गिरोह ने हमेशा के लिए अहिंसा का रास्ता अपना लिया है, उसे अणुवम से भी गुलाम नहीं रखा जा सकता । प्रथम बार जब अणुबम का प्रयोग नागासाकी और हिरोशिमा पर हुआ तब भी गांधी ने यही कहा था 'हिरोशिमा पर अणुबम गिरने और उसके बरबाद होने की खबर पाकर मैं जरा भी विचलित नहीं हुआ। उल्टे मैंने अपने मन से यही कहा कि यदि दुनिया अब भी अहिंसा को नहीं अपनाती है तो मानव जाति आत्महत्या से नहीं बचेगी।' पूरी दुनिया के लिए उनका संदेश था - अणुबम की इस बेहद दर्दनाक कहानी से हमें सबक तो यह सीखना है कि जिस तरह हिंसा-से-हिंसा को नहीं मिटाया जा सकता उसी तरह एक बम को दूसरे बम से नहीं मिटाया जा सकता। इंसान सिर्फ अहिंसा के द्वारा ही हिंसा के गढ़ से निकल सकता है। घृणा दिखाने से वह और भी फैलती है और गहरी होती है । इस कथन के पीछे भी गांधी की अहिंसा आस्था बोल रही है । गांधी का दृढ़ विश्वास था कि शूरवीरों की अहिंसा का शस्त्र धारण करने वाला अकेला भी सारे संसार की प्रबल शक्तियों का एक साथ सामना कर सकता है । 'अहिंसा के हथियार से एक स्त्री या बालक भी हर किसी हथियारधारी दानव का सामना कर सकता है ।' निःशस्त्र अहिंसा की शक्ति हर समय शस्त्रबल की अपेक्षा बहुत ऊँची है । इस प्रकार के निःशस्त्रीकरण संबंधी गांधी के मौलिक विचारों का समर्थन विनोबाभावे ने भी किया। सन् 1962 को जून में नयी दिल्ली में समस्त संसार की अणुअस्त्र विरोधी परिषद् के समायोजन में विनोबाजी ने अपने संदेश में लिखा था- 'अणुअस्त्र तो समाप्त होने ही चाहिए । परन्तु परंपरागत शस्त्र भी कम भयंकर नहीं हैं । अणुअस्त्र तो हमें अहिंसा के नजदीक आने की प्रेरणा देते हैं। क्योंकि वे मनुष्य के विचार - विवेक को जागृत करते हैं । परन्तु पिस्तौल और छूरे तो अहिंसा को धक्का देकर दूर हटाते हैं । ये हथियार दिखने में छोटे हैं, परन्तु यही अणुअस्त्रों के जनक-बाप है। 132 उनकी दृष्टि में अणुअस्त्रों ने संसार के सामने एक चुनौती पेश की है- या तो अहिंसा को स्वीकार करो या मानव जाति के निर्मूलन के लिये तैयार हो जाए । अतः मानव जाति की सुरक्षा का सर्वोच्च साधन अहिंसा ही बन सकती है शस्त्रास्त्र का भंडार नहीं । अहिंसा के सामने बड़ी चुनौती है। इसका मार्मिक चित्रण आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में- 'पौराणिक कहानियों में कहा गया है कि शंकर प्रलय करते हैं । अणुबम तो महाशंकर बन गया, जिसने इतना बड़ा प्रलय कर डाला। जो अहिंसा में विश्वास रखने वाले थे, उन लोगों ने विश्वशांति का अभियान शुरू किया। शांति के लिए प्रयत्न, निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न, युद्ध वर्जना के लिए प्रयत्न किए, किंतु शस्त्रों का निर्माण और अधिक बढ़ गया। वैसे शस्त्रों का निर्माण, जो महाप्रलयंकारी है । 133 शस्त्रों की इस अंधी दौड़ में केवल अणुशस्त्र ही नहीं, उससे भी भयंकर अस्त्रों का निर्माण शुरू हो गया। स्टारवार की योजना प्रचंड हुई, नक्षत्रीय युद्ध, आकाशीय युद्ध की कल्पना सामने आ गई । अस्त्रों के निर्माण का विकास होता गया । एक ओर अस्त्रों के निर्माण की चर्चा बहुत तेज है तो दूसरी ओर अहिंसा की चर्चा भी बहुत तेज है । इसका मनोवैज्ञानिक कारण है- मनुष्य की जिजीविषा । चूँकि खतरा मानव के लिए ही सर्वाधिक गहराया है। शस्त्र निर्माण प्रविधि से जुड़े हुए लोग 'सामूहिक नर-संहार के लिए जीवाणु हथियारों को आदर्श हथियार मानने लगे हैं क्योंकि पहले तो वह सबसे सस्ता है, दूसरे, इसके भंडार को आसानी से छिपाया जा सकता है और तीसरे, इसके प्रयोग से आदमी, पशु आदि प्राणधारी तो मरेंगे पर सम्पत्ति नष्ट नहीं होगी।'' 34 इन कारणों से जीवाणु हथियारों को अच्छा माना जाता है । पर यदि हम मानवीय अहिंसा एक : संदर्भ अनेक / 67
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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