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________________ था। किंतु दोनों का चिंतन बिन्दु एक रहा और वह है आर्थिक समानता। इस बिन्दु पर गांधी व मार्क्स दोनों ने विचार किया, आर्थिक समानता की प्रणालियां प्रस्तुत हो गई। ___लोभ और क्रूरता में घनिष्ठ संबंध है। आत्मानुभूति के बिना क्रूरता नहीं मिटती, करुणा का विकास नहीं होता। विश्व शांति की राह में आर्थिक समस्या एक बहुत बड़ी बाधा है। उसका समीकरण कैसे किया जा सकता है? यह एक जटिल प्रश्न है। चूंकि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी आकाँक्षा-इच्छा है। इसे शब्दों में प्रकट करते हुए मैकेंजी ने एक पुस्तक लिखी- 'यूनिवर्स ऑफ डिजायर-इच्छा का जगत् । इच्छा का एक जगत् है और वह अनंत है। कभी उसका अन्त नहीं होता। उसका आर पार नहीं पाया जा सकता। हर क्षण, हर व्यक्ति में अलग-अलग इच्छाएं पैदा होती रहती हैं। 115 सामयिक संदर्भ में असीम इच्छा, असीम आवश्यकता, और असीम पदार्थ-इस चिंतन के रंग में रंगा हुआ है वर्तमान का मानस । इसी ने जन्म दिया है-पदार्थ प्रधान संस्कृति और 'थ्रो अवे' की जीवन शैली को। बनाओ, भोगो और फेंको। इस समस्या के मूल को पकड़कर एक सुन्दर समाधान दिया-इच्छा का परिमाण करो। इच्छा, अपरिग्रह और आरंभ का एक चक्र है। इच्छा अल्प होगी तो परिग्रह और आरंभ अल्प होगा। जब तक इच्छा को नहीं पकड़ेंगे तब तक न व्यक्तिगत स्वामित्व के सीमाकरण की बात सफल होगी, न ट्रस्टीशिप की बात सफल होगी। इसकी सफलता तभी संभव है, जब इनकी पृष्ठभूमि में इच्छा के सीमाकरण का सूत्र हो। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में परिग्रह और अपरिग्रह, आर्थिक समानता और विषमता का प्रश्न बहुत उलझा हुआ है। धर्म के पास समाधान की एक शक्तिशाली रेखा है-इच्छा परिमाण। इच्छा का परिमाण करो, सीमा करो। इच्छा परिमाण का अर्थ है-परिग्रह का परिमाण। आर्थिक स्वामित्व के सीमांकन का यह सूत्र अध्यात्म के क्षेत्र से उद्भूत हुआ है। अहिंसा के विभिन्न आयामों के सम्यक् ज्ञान पूर्वक ही अहिंसा के राजमार्ग पर बढ़ा जा सकता है। इन आयामों का विमर्श आवश्यक है वर्तमान समय की जो प्रवृत्तियाँ हैं उनसे उपजी जो समस्याएँ हैं उनका अहिंसक समाधान तभी संभव है जब हम अहिंसा के आयामों को और अधिक व्यापकता दें। युद्ध और निःशस्त्रीकरण वैज्ञानिक युग का मानव अस्तित्व रक्षा के लिए बेचैन है, प्रतिपल भयाक्रांत है। इसका मूल कारण-अस्त्रशस्त्रों का अत्याधुनिक जखीरा है। जैविक रासायनिक अस्त्र-शस्त्र के निर्माण ने मानव की नियति को एक बार फिर संशय के घेरे में धकेला है। युद्ध का मूल है-शस्त्रीकरण। शस्त्रीकरण की कल्पना से युद्ध और युद्ध की कल्पना से शस्त्रीकरण का ग्रहण गम्य है। युद्ध और शस्त्र दोनों ही अति प्राचीन काल से अस्तित्ववान् हैं। प्रश्न है क्या युद्ध और शस्त्रीकरण की गति को अहिंसा के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है? क्या अहिंसा की शक्ति इस क्षेत्र में कामयाब हो सकती है? इनका समाधान ऐतिहासिक दृष्टि से भी ज्ञातव्य है। युद्ध का उद्गम स्थल है-मानव मस्तिष्क। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में यह कथन उद्धृत किया गया- 'युद्ध पहले मस्तिष्क में होता है फिर समर भूमि में लड़ा जाता है। 16 कथन के आलोक में युद्ध का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव का अपना इतिहास। इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि जितने भी युद्ध हुए हैं वे जर, जोरू और जमीन के कारण हुए हैं। इनके प्रति 62 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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