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________________ वैर भूल गये और सभी ने आपस में प्रीति बढ़ा ली है । पशु-पक्षियों के झुण्ड वन में निर्भय घूमते हैं। लता और वृक्ष मांगने पर मधु टपका देते हैं, गायें मन चाहा दूध देती हैं । पृथ्वी सदैव खेती से हरी-भरी रहती है । उस समय सत्ययुग की बातें त्रेता में हो गई । समुद्र अपनी मर्यादा में रहते हैं, वे अपने किनारों पर रत्न डाल देते हैं । उन्हें मनुष्य पा जाते हैं । सब तालाब कमलों से भरे हैं, दसों दिशाओं के विभाग बहुत ही प्रसन्न हैं । राम-राज्य में चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों से पृथ्वी को पूर्ण रखता है। सूर्य उतना ही तपता है, जितने से काम बनता है तथा मेघ मांगने पर जल बरसा देते हैं ।" तथ्यतः राम-राज्य का यह वर्णन अहिंसा के विकास का द्योतक है। संपूर्ण राम चरित मानस के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इसमें अहिंसा की अर्थात्मा का प्रयोग यत्र-तत्र निबद्ध है जो अहिंसा के विकासात्मक स्वरूप का द्योतक है। यद्यपि यह तो स्पष्ट ही है कि रामायण के रचनाकाल तक अहिंसा शब्द रूढ़ नहीं बना होगा अथवा तुलसीदासजी ने इसका साक्षात् प्रयोग करने की अपेक्षा भावात्मक स्वरूप को महत्त्व दिया हो । कुछ भी कारण हो सकता है। पर, रामायण में अहिंसा के सूक्ष्म स्वरूप का दर्शन अन्वेषक के लिए सुलभ बन सकता है । महाभारत में अहिंसा अहिंसा की विभिन्न परिभाषाओं, व्याख्याओं से इसके व्यापक स्वरूप का निदर्शन होता है। महाभारत में इसका परमधर्म के रूप में सौंदर्य निखरा है । गागर में सागर कथन को चरितार्थ करने वाला सुप्रसिद्ध मन्तव्य - 'अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा परम तप है । अहिंसा ही परम सत्य है और अहिंसा ही धर्म का प्रवर्तन करने वाली है । यही संयम है, यही दान है, परम ज्ञान है और यही दान का फल है। जीव के लिये अहिंसा से बढ़कर हितकारी, मित्र और सुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है ।" यह अहिंसा का दिव्य रूप है । जिसमें अनेक कार्य क्षेत्रों की एक साथ प्रस्तुति हुई है। इस तथ्य को पुष्ट करने वाला एक और वचन - अहिंसा परम धर्म है। इसका अर्थ है हिंसा न करना । सब जीवों को मनुष्यों और पशुओं को दुःख देना या सताना हिंसा है । यह अहिंसा का सूक्ष्म रूप है जो जैन अहिंसा से मिलता-जुलता है। धर्म ही नहीं, श्रेष्ठ धर्म के रूप में अहिंसा का प्रतिपादन ग्रंथ की गुरुता का द्योतक है। यद्यपि महाभारत में अहिंसा पर विस्तृत चर्चा नहीं मिलती फिर भी हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि इस महाग्रंथ में स्वल्प ही पर, अहिंसा का सूक्ष्मता से जो विमर्श हुआ वह महत्त्वपूर्ण है। अनुशासन पर्व में - 'मन, वाणी और कर्म से किसी की हिंसा न करना अहिंसा है। 62 इसकी व्याख्या में स्पष्टीकरण किया गया कि सर्व प्रथम मानसिक हिंसा को त्यागें फिर वाचिक एवं कायिक | अहिंसा का उल्लेख–‘देवताओं और अतिथियों की सेवा, धर्म की सतत् आराधना, वेदों का अध्ययन, यज्ञ, तप, दान, गुरु और आचार्य की सेवा तथा तीर्थों की यात्रा, ये सब मिलकर अहिंसा की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है । अहिंसा इन सबसे श्रेष्ठ है। 63 अहिंसा की श्रेष्ठता का यह एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। शांतिपर्व में हिंसा को सबसे बड़ा अधर्म और अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म बताया गया है । उसी प्रसंग में उल्लेख है कि - ' जीवों के लिये अहिंसा से बड़ा कोई धर्म नहीं है क्योंकि इसके द्वारा प्राणियों की रक्षा होती है और किसी को भी कोई कष्ट नहीं होता ।'64 यह कथन अहिंसा के विराट् स्वरूप को प्रकट करता है । अहिंसा को व्यावहारिक धरातल महाभारत काल में मिला या नहीं यह खोज का विषय है। पर, इसे लोक जीवन में प्रतिष्ठित करने का सार्थक प्रयत्न हुआ। ऐसा अनेक संदर्भों से ज्ञात होता है । व्यक्ति को निवास कहां करना चाहिए? इस संदर्भ 1 42 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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