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की शक्ति की चर्चा करते हुए गांधी ने कहा 'हमें अहिंसा के रूप में जो शक्ति प्राप्त हुई है यदि मोर्चा उसे संगठित कर दिया जाय तो वह दुनिया की हिंसक - से हिंसक शक्तियों के संयुक्त बल ले सकती है। अहिंसा - प्रणाली में पराजय के लिए कोई स्थान नहीं है। उसका मन्त्र तो करो या मरो है, और वह दूसरों को मारने या चोट पहुंचाने में विश्वास नहीं रखती है। उसके उपयोग में, न धन की दरकार है, न उस विनाशकारी विज्ञान की। 31 निश्चित रूप से उन्होंने अहिंसा की आस्था पर अहिंसक आंदोलन की बुनियाद खड़ी की थी।
बदले हुए परिवेश में अहिंसक आंदोलन की गतिविधियों को बलपूर्वक समाज, राष्ट्र व्यापी अव्यवस्थाओं पर नियंत्रण पाने हेतु अपनाने की जरूरत है। आत्मपीड़न एवं हृदय परिवर्तन के शुभ संकल्प से संचालित अहिंसक आंदोलन में आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक बुराइयों पर विजय पाने की क्षमता है। गांधी ने अपने अहिंसक आंदोलनों में हृदय परिवर्तन पर बल दिया । हृदय परिवर्तन के बिना समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सकता। इस आशय की क्रियान्विति के बतौर गांधी ने सत्याग्रही और शांति सैनिक की नई अवधारणा प्रस्तुत की। वर्तमान के संदर्भ में गांधी के चिंतन को ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाला आचार्य महाप्रज्ञ का चिंतन महत्त्वपूर्ण
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अहिंसा की प्रतिष्ठा एवं हृदय परिवर्तन की पृष्ठभूमि में महाप्रज्ञ ने शोधपूर्वक अहिंसा प्रशिक्षण की प्रविधि प्रस्तुत की। उन्होंने कहा 'सिद्धांत और प्रयोग दोनों का योग मिले तो परिवर्तन की संभावना की जा सकती है। अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति अहिंसा की चर्चा ही न करे, उसके प्रशिक्षण की प्रायोगिक पद्धति भी सीखे, यह आवश्यक है। करोड़ों सैनिकों को युद्ध का प्रशिक्षण दिया जाता है। क्या हजारों लोगों को अहिंसा का प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता?' कथन में परिवर्तन की आस्था का निदर्शन है। चारों ओर चर्चा है कि अहिंसा के द्वारा अब तक परिवर्तन नहीं हुआ । शब्दों से परिवर्तन कैसे सम्भव होगा? अगर ऐसे शाब्दिक चमत्कार से कार्य हो जाए तो दुनिया कब की बदल जाए। उनका यह मानना था कि मनुष्य के दिमाग को प्रशिक्षित किए बिना कोई आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता । मस्तिष्कीय प्रशिक्षण के अभाव में कोई भी परिवर्तन संभव नहीं होता । मस्तिष्कीय परिवर्तन अथवा हृदय परिवर्तन पर वे विशेष बल देते ।
हम चेतन स्तर पर अहिंसा की बात करेंगे तो जनता उसे नहीं मानेगी। हम अपने उद्देश्य में सफल नहीं होंगे। अहिंसा के प्रशिक्षण के लिए चेतना के सूक्ष्म स्तरों तक जाना अपेक्षित है । हमारे शरीर के भीतर दो सूक्ष्म शरीर हैं - तैजस शरीर और कार्मण शरीर । अहिंसा के लिए इन शरीरों तक पहुँचना जरूरी है । 1 32 इस सूक्ष्म मीमांक्षा के साथ महाप्रज्ञ ने ध्यान के विभिन्न प्रयोग प्रस्तुत किये जिनके सकारात्मक परिणाम आये हैं। अहिंसा प्रशिक्षण में उन प्रयोगों का समावेश है जो हमारे भावतंत्र को प्रभावित कर वहां पैदा होने वाले रसायनों को बदल देते हैं । यह सिद्ध हो चुका है कि हिंसा और अहिंसा दोनों का स्रोत हमारे मस्तिष्क में विद्यमान है। जब व्यक्ति के भाव उत्तेजना और आवेश में होते हैं, व्यक्ति में हिंसा की चेतना जागती है । उत्तेजनात्मक आवेश हिंसा का कारण है । ठीक इसके विपरीत जब व्यक्ति शांत, संतुलित होता है तब अहिंसा के भाव विकसित होते हैं। हिंसा की शक्ति भय और आतंक पैदा करने वाली, डराने वाली, संताप देने वाली शक्ति है । अहिंसा की शक्ति अभय की चेतना को जागृत करने वाली, मैत्री, सौहार्द, आत्मीयता, अपनापन पैदा करने वाली शक्ति है । 33 इन शक्तियों का प्रयोगों के द्वारा वांछित परिवर्तन किया जा सकता है। हिंसा के भावों को बदलने एवं अहिंसा के भावों को विकसित करने में अहिंसा प्रशिक्षण के प्रयोग प्रभावी सिद्ध हुए हैं ।
समन्वय की दिशा एक चिंतन / 403