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________________ रहस्यपूर्ण नीति ही अहिंसा की कूटनीति है। महात्मा गांधी ने इसी कूटनीति के अंतर्गत हिंसा के विरोध में असहयोग नीति का सूत्र दिया।"स्पष्टीकरण में लिखा जो समाज और शासन के मुखिया है, उसके लिए अहिंसा एक नीति है। जब तक राजनीति के साथ अहिंसा का समावेश नहीं होगा, तब तक राष्ट्र का भला नहीं हो सकता। अहिंसा से व्यक्ति, समाज, राजनीति और राजनीतिक व्यवस्था प्रभावित होनी चाहिए। जब अहिंसा का इन पर प्रभाव होगा तब बुराइयां अपने आप समाप्त होंगी। अपने मंतव्य की पुष्टि में कहा-'कुशल राजनेता वह है, जो अहिंसा की नीति का अनुसरण करता है। अहिंसा की नीति का अर्थ है सामंजस्य । सामंजस्य से उनका आशय है-स्वार्थ और परार्थ में संतुलन।' स्वार्थ वर्तमान युग की समस्या है पर उसकी भी सीमा हो तो स्वार्थ-परार्थ में संतुलन संभव है। महाप्रज्ञ का चिंतन बहुत स्पष्ट था। क्षीर-नीर प्रज्ञा से निष्पन्न विचार धारा में मौलिकता का निदर्शन है। जिसकी एक झलक-धर्म के संदर्भ में विचार करें तो कहना होगा-अहिंसा धर्म है। सामाजिक, राजनैतिक और वैश्विक संदर्भ में विचार करें तो कहना होगा-अहिंसा एक नीति है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अहिंसा को नए संदर्भ में समझने की जरूरत है। राष्ट्र की समस्याओं के समाधान की दृष्टि से दीर्घकालीन नीति को अपनाना जरूरी है। दोनों ही महापुरूष अहिंसा की दिव्य ज्योति को कर्म अथवा कर्तव्य से, नीति अथवा आचार से जोड़ कर समाज एवं राष्ट्र को स्वस्थ बनाने के पक्षधर बनें। इसकी क्रियान्वित हेतु उन्होंने अपने मिशन को ऊंचाइयां प्रदान की। वर्तमान युग की यह अहं अपेक्षा है कि समस्या समाधान के आलोक में मनीषियों के अहिंसा संबंधी विचारों को समन्वयात्मक रूप से प्रभावी बनाया जाये। रचनात्मक कार्य : अहिंसक समाज गांधी के रचनात्मक कार्यों एवं महाप्रज्ञ के अहिंसक समाज संरचना स्वस्थ-समाज परिकल्पना के समन्वय सूत्र की युगपत मीमांसा अपने आपमें मौलिक है। गांधी के रचनात्मक कार्यों की पृष्ठभूमि में भले ही भारतीय आजादी एवं ग्रामोत्थान की भावना रही हो पर उसमें निश्चित रूप से अहिंसा के बीज विद्यमान थे। दूसरी तरफ महाप्रज्ञ की अहिंसक समाज संरचना की परिकल्पना में अहिंसा के नैतिक मूल्यों के आगोश में विकास का पूर्ण अवकाश है। दोनों की युति आदर्श समाज की परिकल्पना को साकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकती है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान रचनात्मक कार्यों का श्रीगणेश जन जागृति की दृष्टि से बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ। आर्थिक आत्म निर्भरता के आधार पर देश की जनता को स्वावलम्बी बनाने के प्रयत्न निश्चित रूप से अहिंसा की धुरा पर टिके थे। चरखा, खादी, लघु कुटीर उद्योग आदि कार्यों का व्यापक प्रचार तात्कालीन परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण था। रचनात्मक कार्यों के संगठित प्रयोग हेतु गांधी ने अनेक संस्थाओं का प्रवर्तन किया। स्पष्ट शब्दों में कहा-'काम का मेरा प्रयत्न शुद्ध अहिंसा के अनुसार करने का है।.....अखिल भारत चरखासंघ और अखिल भारतीय ग्रामोद्योग-संघ ऐसी संस्थायें हैं, जिनके द्वारा अहिंसा की कार्य-पद्धति का अखिल भारतीय प्रेमाने पर प्रयोग किया जा रहा है।' इस कथन से रचनात्मक कार्यों की अहिंसक आधार भित्ति उजागर होती है। विभिन्न रचनात्मक कार्यों की इतिश्री गांधी भारत की स्वतंत्रता के साथ करने के पक्षधर नहीं थे अपितु वे रचनात्मक काम में लगे हुए सब संगठनों को एकताबद्ध 400 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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