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________________ झगड़े की स्थिति में विकास नहीं किया जा सकता है । हिन्दू-मुसलमान एकता हेतु दोनों पक्षों के लोगों को आगाह किया कि किसी समप्रदाय का उत्सव हो, उसका अनादर न करें ...... मनुष्य में आस्था का अंतर हो सकता है । पर उसके लिए हम दूसरों के दिल को चोट पहुँचाएँ, यह उचित नहीं है । धर्म अलग-अलग हो सकते हैं । नैतिकता हिन्दू-मुसलमान दोनों के लिए है । आजादी के दिनों महात्मा गांधी द्वारा कोलकाता में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयत्नों की स्मृति करवाने वाला आचार्य महाप्रज्ञ का उपक्रम अहमदाबाद यात्रा के दौरान देखा गया। सांप्रदायिक हिंसा से ग्रस्त गाँवों में महाप्रज्ञ के चरण टिकें, उनमें एक ऐसा गाँव जहाँ जल्दी ही दंगा होने की प्रबल संभावना थी। दंगे के लिए आवश्यक साधन और सामग्री जुटा ली गई थी, महाप्रज्ञ ने तत्काल उस गांव के हिन्दू और मुसलमान दोनों समुदायों के प्रमुख लोगों को बुलाया। उनके साथ महाप्रज्ञ की लगभग पंद्रह मिनट तक बातचीत हुई। महाप्रज्ञ ने ज्ञापन दिया- 'हमने दोनों समुदायों को आमने सामने बैठाकर कुछ बातें कही। लगभग आधा घंटा बाद हमें दोनों पक्षों की ओर से यह सूचना मिली कि अब दंगा नहीं होगा, अहिंसा प्रशिक्षण का कार्य शुरू होगा। दोनों समुदाय मिलकर इस कार्यक्रम को चलाएंगे।'''' यह महाप्रज्ञ के प्राणवान प्रयत्नों का सुफल था। लोगों के दिलों में प्रेम के सुमन खिलें । एकता के प्रयत्न को मूर्त रूप देते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने अहमदाबाद में जगन्नाथ की रथयात्रा में सम्मिलित होने का आमंत्रण स्वीकार किया। सनातन धर्म की रथयात्रा में जैन आचार्य का जाना कहाँ तक उचित होगा? ऊहापोह की परवाह किये बगैर ससंघ यात्रा में सम्मिलित हुए और स्पष्टीकरण किया- 'आस्था अलग हो सकती है । पर अहिंसा के विचार में साम्य हो, इसलिए हम वहाँ गए।' जैन आचार्य का रथयात्रा में जाने का यह प्रथम अवसर था । उनकी उपस्थिति से सद्भावना का अभिनव रंग खिला। तनाव पूर्ण वातावरण में शांति पूर्वक रथयात्रा का मंचन महाप्रज्ञ की सूझबूझ का उदाहरण बन गया । 1 साम्प्रदायिक तनाव मुक्ति हेतु आचार्य महाप्रज्ञ की मौलिक चिंतन धारा ने सामाजिक वातावरण को स्वस्थ बनाने में अहं भूमिका निभाई है। गुजरात के दंगा पीड़ित कट्टरपंथी मुस्लिम लोगों द्वारा शांति स्थापना की पुरजोर प्रार्थना पर आचार्य महाप्रज्ञ ने साम्प्रदायिक सौहार्द की सभी से अपील की - हिंसा से हिंसा का शमन नहीं हो सकता। हिंसा का शमन अहिंसा से हो सकता है । कुछ एक व्यक्तियों के अपराध के कारण पूरे सम्प्रदाय एवं जाति को दोषी मानना उचित नहीं है । यहाँ आज जैसा वातावरण बना हुआ है वह निरंतर ऐसा ही बना रहा तो प्रदेश का विकास नहीं हो सकता । आपसी प्रेम एवं विश्वास का वातावरण बने एवं सभी एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करें इसकी आवश्यकता है। कटुता एवं अविश्वास के वातावरण में कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता । आज आवश्यकता है उदार एवं अनुदार सभी लोगों के बीच सामंजस्य स्थापित हो । मानव जाति एक है । जिसका अहिंसा में विश्वास हो वह भेदभाव को महत्त्व नहीं दे सकता ।.... आखिर इस देश में हिंदू और मुसलमान दोनों को साथ-साथ रहना है । भय और आतंक के वातावरण में न आर्थिक विकास हो सकता है, न शैक्षणिक । देश की प्रगति के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द अत्यंत अपेक्षित है। 15 मनोवैज्ञानिक तरीके से आम लोगों को यह तत्व समझाया कि पारस्परिक सौहार्द कितना जरूरी है। उन्होंने बताया-हिन्दुस्तान विभिन्न जातियों, वर्गों और संप्रदायों का देश है। दुनिया को एक सिरे दूसरे सिरे तक देखें, इतना विविधवर्णी देश दूसरा कोई नहीं मिलेगा । सदियों से रहते आए विविध 394 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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