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________________ या दबाब किसी भी तरह नहीं हो सकता। इसका तो उद्देश्य हृदय परिवर्तन है ।' स्पष्टतया व्यक्तिव्यक्ति का हृदय परिवर्तन यानी व्यक्ति सुधार ही गांधी की दृष्टि में महत्त्वपूर्ण था । व्यक्ति निर्माण की उनके भीतर अद्भुत कला थी । उन्होंने ऐसे व्यक्तित्व तैयार किये जो देश की आजादी के लिए अहिंसा की राह पर कुर्बान होने को भी तत्पर थे। उदाहरण के रूप में पं. मोतीलाल नेहरू, बाबू राजेंद्रप्रसाद, सी. सार. दास, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सी. राजगोपालाचार्य, पं. जवाहरलाल नहेरू आदि प्रमुख हैं। गांधी के संपर्क से अनेक लोगों के जीवन का सारा अर्थ-बोध ही बदल गया था। पं. मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद के उच्च न्यायालय में अपनी लाखों की प्रेक्टिस को लात मार दी थी; बीमारी के बाद किसी स्वास्थ्यप्रद स्थान में स्वास्थ्य लाभ के दौरान उन्होंने गांधी जी को एक पत्र लिखा था। उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं ‘पहले के राजसी रसोड़े की जगह सिर्फ एक छोटी-सी रसोई और नौकरों की पुरानी पटन में से अकेला एक मामूली-सा नौकर-चावल, दाल और मसाले की तीन छोटी-छोटी थैलियां,.. शिकार को धता बताई, दूर-दूर तक पैदल घूमने निकल जाता हूं, राइफल और बंदूकों की जगह किताबों और पत्र-पत्रिकाओं ने ले ली है..... कहाँ से कहाँ पहुँच गये, लेकिन जिंदगी का जो लुफ्त आज है वह पहले कभी न था । 106 उदाहरण से स्पष्ट होता है कि उनके सम्पर्क से पं. मोतीलाल नेहरू के जीवन में मौलिक परिवर्तन घटित हुआ। ऐसे अनेक व्यक्ति थे जिनका निर्माण गांधी ने अपनी अहिंसक चेतना के जरिये किया। उन्होंने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का सपना साकार किया । गांधीवत् आचार्य महाप्रज्ञ ने राष्ट्र निर्माण में व्यक्ति निर्माण को महत्त्वपूर्ण बताया। ' व्यक्ति समाज व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा' श्लोगन के द्वारा जन-जन में जागृति का सिंहनाद किया । व्यक्ति निर्माण की पृष्ठभूमि में नैतिक चारित्रिक उत्थान के साथ संयम चेतना के जागरण को महत्त्वपूर्ण बतलाया । अहिंसा की बात कहां से शुरू करें? इसे समाहित करते हुए महाप्रज्ञ ने स्पष्ट कहा - 'अहिंसा प्रतिष्ठा की शुरुआत व्यक्ति से करें । व्यक्ति स्वयं बदले, उसके संस्कार बदले, मान्यता बदले और यह धारणा पुष्ट बन जाए कि अहिंसा मेरा स्वभाव है । मुझे अहिंसा का जीवन जीना है, मेरी जीवन शैली अहिंसा की होगी ।' व्यक्ति निर्माण की परिकल्पना अहिंसा के बुनियाद पर की गई है। महाप्रज्ञ के संपर्क आने वाली अनेक व्यक्तियों की जीवनधारा में मौलिक परिवर्तन आया और उनमें दिव्यगुणों का संचार हुआ। इसकी पुष्टि में एक-दो उदाहरण ही पर्याप्त होंगें । रामाधार नामक व्यक्ति अहिंसा यात्रा के दौरान आचार्य महाप्रज्ञ के सम्पर्क में आया और परिवर्तन का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। एक समय था जब वह अपनी रिवॉल्वर हमेशा अपनी छाती से चिपका कर रखता था । आज उसे उस लोहे के खिलौने से कोई मोहब्बत नहीं है वह उसे बेचकर उससे मिलने वाले पैसों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति के प्रसार में लगाना चाहता । वह रामाधार जिसकी पहले पहचान इकबाल नाम से थी। पाँच खून करने पर भी पकड़ा नहीं गया। आज वह शांति योद्धा बन चुका है। 107 महाप्रज्ञ के संपर्क से बदलने वाले लोगों की बड़ी संख्या है I मुंबई में सुपारी चलती है। खाने वाली सुपारी नहीं, यहाँ सुपारी का अर्थ है किसी को मारना । (मुंबई वालों की भाषा में इसे 'खल्लास' करना कहते हैं ।) सुपारी, यानि एक तरह का ठेका ..... . यात्रा के दौरान इस तरह सुपारी लेकर काम करने वाला एक भाड़े का आदमी मुझे (महाप्रज्ञ) मिला । वह मेरे पास आया और बोला- 'महाराज ! आपने मुझे पहचाना?' मैं कुछ देर तक उसकी ओर देखता रहा, फिर बोला-‘आकृति कुछ जानी-पहचानी-सी जरूर लगती है, किंतु पहचान नहीं पा रहा हूँ ।' अभेद तुला : एक विमर्श / 391
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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