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________________ साल के लिए दाल और नमक का त्याग किया। इतना ही नहीं किसी भी अप्रिय घटना के घटने पर गांधी प्रायश्चित्त स्वरूप निराहार उपवास किया करते थे। अहिंसक चेतना के विकास स्वरूप गांधी ने अनेक प्रयोग किये जिसमें दूध का परित्याग भी सम्मिलित है। सूक्ष्म दृष्टि से वे हर क्रिया को अहिंसक पद्धति से संपादित करने के पक्षधर थे। हर क्षण के सदुपयोग का स्मरण उनकी अहिंसक चेतना का सबूत है। सामान्य रूप से छोटी-से-छोटी बात पर भी उनकी नजर टिकी रहती। यहाँ तक कि पानी का अपव्य न हो इस दृष्टि से पानी के ड्रम के पास एक तख्ती लगवाई गयी। उस पर लिखा था -आवश्यकता से अधिक एक बँद जल व्यर्थ फेंकना, 'अपरिग्रह व्रत' के विरुद्ध आचरण होगा। आचरणात्मक पहलू से स्पष्ट होता है कि उनका अहिंसा धर्म विशाल था। उसमें सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह सभी व्रतों का समावेश था। इन प्रमुख व्रतों की साधना अपने जीवन में की। जीवन के व्यक्तिगत व्यावहारिक पक्ष से लेकर राजनीति पर्यत अहिंसा के प्रयोगों की अनगँज गांधी की विरल पहचान थी। महाप्रज्ञ ने अहिंसा को जीवनव्रत के रूप में स्वीकारा अतः उनके जीवन की प्रत्येक क्रिया में अहिंसा की छाप स्वाभाविक रही है। मन-वचन-कर्म की सूक्ष्म अहिंसक साधना उनके जीवन का अभिन्न अंग बनी। अतः महाप्रज्ञ के जीवनगत अहिंसानिष्ठ प्रयोगों का उल्लेख नाममकिन है। पर उनकी प्रायोगिक अहिंसा का अंकन परमानंद कापड़िया के इस उल्लेख से किया जा सकता है- 'मेरे लेख में कहीं-कहीं व्यंग्य भी है, कटूक्तियाँ भी हैं, किन्तु मुनिश्री नथमलजी ने जो लेख लिखा है, उसमें केवल समीक्षा है, न कोई व्यंग्य और न कोई कटूक्ति।' इससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। यह कथन महाप्रज्ञ की प्रायोगिक अहिंसा का प्रमाण है, जो उनके लेखन में भी झलकती रही। महाप्रज्ञ का मानना था कि जब तक अहिंसा को प्रायोगिक संदर्भ नहीं मिलेगा इसके वांछित परिणाम नहीं निकलेंगे। उन्होंने बलपूर्वक कहा अहिंसा का केवल उपदेश ही नहीं प्रयोग व प्रशिक्षण भी जरूरी है। अहिंसा प्रशिक्षण महाप्रज्ञ द्वारा सझाया गया ऐसा उपक्रम है जो प्रयोक्ता की अहिंसक चेतना को जगाता है। इसका आधार सूत्र है-हिंसा के बीजों को प्रसुप्त बनाकर अहिंसा के बीजों को जागृत करना। अहिंसा के बीज वपन हेतु अहिंसा प्रशिक्षण की आवश्यकता पर न केवल बल दिया अपितु इसकी समग्र प्रक्रिया प्रस्तुत कर इसे व्यापकता प्रदान की। हजारों व्यक्ति इस प्रशिक्षण से जडे और परिवर्तन की मिसाल कायम की। उदाहरण स्वरूप-अहिंसा प्रशिक्षण से झाबआ जिले के आदिवासियों के जीवन में एक मोड़ आया है। झारखंड के 35 छात्र उग्र नक्सलवादी गतिविधियों से तंग आकर अहिंसा का प्रशिक्षण लेकर अहिंसा के प्रचार कार्य से जुड़ रहे हैं। अहिंसा प्रशिक्षण को अधिक व्यापक बनाने हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने सप्तवर्षीय अहिंसा यात्रा का अभियान चलाकर जन-जन में अहिंसा की निष्ठा पैदा करने का सार्थक उपक्रम किया है। महाप्रज्ञ ने अनुभव किया-'अहिंसा यात्रा की जरूरत पूरे राष्ट्र और विश्व को है। आज जिस प्रकार हिंसा बढ़ रही है, उससे पूरा राष्ट्र चिंतित है। यदि पूरे राष्ट्र में अहिंसा की यात्रा चले तो पूरा राष्ट्र फलफूल सकता है। इस बढ़ती हिंसा में भावी पीढ़ी का कल्याण कैसे हो? उसके लिए अहिंसा यात्रा जरूरी है। अहिंसा को, धर्म को जब तक जीवन की व्यावहारिक समस्याओं के साथ नहीं जोड़ेंगे, तब तक धर्म केवल कल्पना की बात, जवानी जमा खर्च की बात रहेगा, धर्म की सारी अवधारणा को ही बदलना है। स्पष्टतया महाप्रज्ञ अहिंसा को सामाजिक धरातल पर प्रायोगिक रूप में प्रतिष्ठित करने 386 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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