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________________ गांधी अहिंसा की शक्ति से पूरे विश्वस्त थे। पर उन्होंने यह स्वीकारा कि अभी इस शक्ति की खोज अधूरी हो पाई है, पूर्णता का परिणाम अपूर्व होगा। ____ अहिंसा की शक्ति को गांधी ने विभिन्न संदों में पाया। उसका एक संदर्भ था प्रेम का विस्तार। प्रेम और अहिंसा उनकी दृष्टि में एक ही थे। जिस तरह कि गुरुत्वाकर्षण का नियम हम चाहे माने या न मानें अपना काम करेगा। जिस प्रकार एक वैज्ञानिक प्राकृतिक नियमों के प्रयोग द्वारा आश्चर्यजनक बातें पैदा करता है उसी तरह यदि कोई व्यक्ति प्रेम का वैज्ञानिक यथार्थता के साथ प्रयोग करे तो वह इससे अधिक आश्चर्यजनक बातें पैदा कर सकेगा। क्योंकि अहिंसा की शक्ति-प्राकृतिक शक्तियोंउदाहरणार्थ बिजली आदि से कहीं अधिक अनंत, आश्चर्यजनक और सूक्ष्म है। जिस व्यक्ति ने हमारे लिए प्रेम के नियम अथवा कानून की खोज की, वह आजकल के किसी भी वैज्ञानिक से कहीं अधिक बड़ा वैज्ञानिक था। केवल हमारी शोध अभी तक जितनी चाहिए उतनी नहीं हुई है और इसलिए प्रत्येक के लिए उसके परिणाम देख सकना संभव नहीं है। कुछ भी हो, यह उसकी एक विशेषता है. जिसके अंतर्गत मैं प्रयत्न कर रहा है। प्रेम के इस कानन के लिए मैं जितना अधिक प्रयत्न करता हूं, उतना ही अधिक मुझे जीवन में आनंद-इस सृष्टि की योजना में आनंद अनुभव होता है। इससे मुझे शांति मिलती है और प्रकृति के रहस्यों का अर्थ जान पाता हूँ, जिनका वर्णन करने की मुझमें शक्ति नहीं है। ये उद्गार गांधी ने यूरोप की भूमि मार्सेल्स के विद्यार्थियों के बीच कहे थे। इस चिंतन में गहन अनुभूति का आलोक है। आजादी प्राप्ति के सिलसिले में गांधी ने अनेक कष्ट जेलों और विदेशियों के बीच सहे। इस कष्ट सहिष्णु मनःस्थिति के पीछे अहिंसा का बल था। उनके कार्य करने की शक्ति को देखकर अनेक लोग उनसे यह जानने को उत्सुक होते कि इतने दुबले-पतले शरीर में कार्य करने की और कष्ट सहन करने की इतनी क्षमता कहाँ से आयी? उन्होंने बताया- 'अहिंसा के अतिरिक्त मुझ में अन्य कोई शक्ति नहीं है। मुझ में जो शक्ति है, वह अहिंसा की ही शक्ति है।' अपने लाखों अनुगामियों से भी यही कहा-हमें यह सिद्ध कर दिखाना है कि संसार में अहिंसा से बढ़कर तेजस्विनी कोई शक्ति है ही नहीं। यह उजागर होता है कि बापू ने अहिंसा की शक्ति को किस रूप में स्वीकार किया था। गांधी की भांति महाप्रज्ञ अहिंसा की शक्ति के प्रति पूर्ण आश्वस्थ थे। उनका यह मानना था कि अहिंसक शक्ति के सहारे हर असंभव को संभव बनाया जा सकता है पर शर्त एक ही है उसका निष्ठा के साथ अनुशीलन किया जाये। ___ अहिंसा की अदृश्य शक्ति में महाप्रज्ञ का पूरा विश्वास था। इस विश्वास का आधार रहा है वीतराग वचन। भगवान् महावीर ने कहा-'अहिंसा सब जीवों का कल्याण करने वाली है। जैसे भूखे के लिए भोजन, प्यासे के लिए जल और पक्षी के लिए आकाश सहारा है, वैसे ही अहिंसा सबके लिए सहारा है।' यह सत्य का निदर्शन है। विभिन्न नैतिक मूल्य द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव सापेक्ष हित संपादक बनते हैं वहीं अहिंसा निरपेक्ष रूप से सर्वत्र-सर्वदा सबका कल्याण करने वाली अमिट शक्ति है। आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसा में व्यापक शांति स्थापना की शक्ति देखते थे पर वे बाधक तत्त्वों को भी स्वीकारते रहे हैं। उनका स्पष्ट कथन था कि अहिंसा एक पारसमणि है जिसके द्वारा लोहे को सोना बनाया जा सकता है। इसके द्वारा समाज में शांति की और अमन चैन की स्थापना की जा सकती है। जो सोने के द्वारा नहीं की जा सकती, उस शांति की स्थापना अहिंसा के द्वारा की जा 380 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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