SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभेद तुला : एक विमर्श महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के विचारों में जहाँ भिन्नता है, वहाँ अद्भुत समानता भी देखी नता का संदर्भ भले ही आंशिक बझाये पर उनका आशय लक्ष्यभेदी होने से उन विचारों को अभेद की श्रेणी में रखा गया है। प्रस्तुत संदर्भ में उन पहलुओं का विमर्श इष्ट है जो मनीषी द्वय की वैचारिक एकता के द्योतक हैं। अहिंसा की आस्था अहिंसा के प्रति गांधी की अटूट आस्था उनके मन-वचन-कर्म में समायी हुई थी, जिसकी प्रस्तुति अनेक प्रसंगों पर हुई। उन्होंने कहा-'अहिंसा परमो धर्मः' अहिंसा जीवन का उच्चतम सिद्धान्त है। उसके पालन से यदि जरा भी हम च्युत हों तो उसे हमारा पतन समझना चाहिये। भूमिति की सरल रेखा तख्ते पर चाहे न खींची जा सकती हो परन्तु उस कार्य की असंभवता के कारण वह व्याख्या नहीं बदली जा सकती। अहिंसा की यह आस्था सत्य शोध से जुड़ी हुई थी। वे कहते-'मुझे पक्षपात सत्य का ही है और मैं अहिंसा मार्ग से सत्य का शोधन करता हूँ। मैंने अनुभव किया है कि दूसरे मार्ग से सत्य का पता नहीं लग सकता। सत्य है या नहीं, अहिंसा परम धर्म है या नहीं-मेरे निकट ये विवादग्रस्त विषय नहीं है। इस विषय में अपने मन में शंका का होना भी मैं संभव नहीं मानता। किन्तु उसका पालन क्यों कर हो, यह प्रश्न मेरे पास हमेशा खड़ा रहता है।' स्पष्टतया गांधी की अहिंसा आस्था निर्विकल्प थी, जिसकी प्रस्तुति अनेक प्रसंगों पर की गई। उनका यह मानना था कि अहिंसा बल पर ही मानव अस्तित्व टिका हुआ है। उन्होंने कहा'अगर अहिंसा या प्रेम हमारा जीवन धर्म न होता, तो इस मर्त्यलोक में हमारा जीवन कठिन हो जाता।' अहिंसा और प्रेम ही ऐसे तत्त्व हैं जो असंभव को संभव में बदल सकते हैं। गांधी इसी बल पर डटे रहे। वे कहते थे-अंग्रेजों का स्वभाव है कि वे झुकते नहीं। इस पर उन्हें कोसने की आवश्यकता नहीं। हमारे प्रेम की आग से उनके 'कठोर से कठोर बाहुदण्ड' पिघले बिना नहीं रह सकते। मैं इस बात को जानता हूँ, अतएव अपनी इस स्थिति से हट नहीं सकता। इस फौलादी आस्था का ही चमत्कार था कि लम्बे अर्से तक भारत पर राज करने की अंग्रेजों की मानसिकता बदल गयी। ___अहिंसा के परिणाम निकले। दुनिया के प्रवुद्ध मानस ने यह अनुभव किया। एक यूरोपियन भाई ने खत के जरिये गांधी को लिखा-'आपने जिंदगी भर अहिंसा पर चलने और दूसरों को चलाने की पूरी कोशिश की है। अपनी अपार लगन की बदौलत आपको अपने काम में कामयाबी मिली अभेद तुला : एक विमर्श | 373
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy