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________________ भेद दृष्टि के आधारभूत मानक बीसवीं / इक्कीसवीं शताब्दी को आध्यात्मिक दिशा देने वालों में महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ का नाम अग्रणी है। सनातन मूल्यों के आलोक में युगधारा को मोड़ने वाले महापुरुषों के विचारों में समानता और वैशिष्ट्य का अपूर्व संगम है । अहिंसा के विराट् संदर्भ को जीवन-व्यवहार की समग्र प्रक्रिया में समरस बनाने हेतु गांधी का प्रयत्न स्तुत्य है । आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा की अखंड आ को जीवन का सदाव्रत बनाया। वे अहिंसा के प्रतीक पर्याय थे। उनके चिंतन, वाणी एवं कर्म से अहिंसा मुखरित हुई। उनकी दृष्टि में अहिंसा किसी भी स्थिति में अपनी मौलिकता को अतिक्रांत नहीं कर सकती। मनीषियों के अहिंसा संबंधी विचारों में भेद, अभेद एवं समन्वय की दिशा का विमर्श प्रस्तुत अध्याय में अभीष्ट है। कार्यक्षेत्र गांधी और महाप्रज्ञ की अहिंसादृष्टि को मौलिक आधार देने वाले तथ्यों में महत्त्वपूर्ण है - उनका कार्यक्षेत्र । गांधी के कार्य का अभिन्न अंग बना राजनैतिक क्षेत्र । स्वभाव से गांधी आध्यात्मिक, नैतिक निष्ठावान व्यक्ति थे। राजनीति को उन्होंने आपद्धर्म के रूप में अपनाया और भारतीय उच्च आदर्शों पर उसके मानचित्र को नया रूप प्रदान किया । परिणामतः वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी ही नहीं महानायक बन गये। गांधी को महानायक की भूमिका पर प्रतिष्ठित करने वाला सेतु था उनका अहिंसा प्रेम । इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि गांधी देश की आजादी को अति महत्त्वपूर्ण लक्ष्य मानते थे फिर भी वे उसे अहिंसा को त्यागकर प्राप्त करना नहीं चाहते थे । विदेशी सत्ता को हटाने के लिए हिंसा के बदले अहिंसा को हथियार बनाने का कारण भी यही था । गांधी ने अहिंसा का सर्वाधिक प्रयोग राजनीति के क्षेत्र में किया । चाणक्य और मैक्यावली जैसे अनेक राजनीतिक चिंतकों के प्रभाव से छल छद्म, दांव-पेंच तथा झूठ-प्रपंच आदि दुर्गुणों से युक्त राजनीति को उन्होंने अहिंसा के प्रयोग से स्वच्छ एवं स्वस्थ करके, सत्य, प्रेम तथा करुणा आदि सद्गुणों से संपृक्त किया। इससे भी बढ़कर उन्होंने अपनी व्यक्तिगत मुक्ति का आधार राष्ट्र सेवा को बनाया। गांधी से पूर्व किसी को यह नहीं सूझा कि राजनैतिक आंदोलन तथा समाज सेवा के कार्य भी वैयक्तिक मुक्ति के साधन सकते हैं। अहिंसा की अमिट आस्था से अभिनव भावधारा का संचार हुआ जिसकी प्रस्तुति उनके विचारों में देखी जाती है । मैं सत्य का विनम्र सेवक हूँ । आत्मज्ञान प्राप्त करने को अधीर हूँ । मैं इस जीवन में मोक्ष चाहता हूँ। मेरी राष्ट्र सेवा मेरी आध्यात्मिक भेद दृष्टि के आधारभूत मानक / 351
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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