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________________ परिवर्तन की सशक्त कड़ी : मूल्य बोध जीवन की दिशा बदलने में मूल्यों की अनन्य भूमिका है। मूल्य स्थापन की दृष्टि से महात्मा गांधी ने बहुत बड़ा कार्य किया और अहिंसा-सत्य जैसे मूल्यों की बदौलत देश को आजादी का उपहार दिया। उनका मूल्य स्थापन का अपना तरीका था। प्रस्तुत संदर्भ में आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा और नैतिकता की प्रतिष्ठा हेतु जिन चारित्रिक मूल्यों का शिक्षा के साथ समावेश किया उनका संक्षिप्त विमर्श इष्ट है। आचार्य प्रहाप्रज्ञ ने चारित्र निर्माण की वैज्ञानिक प्रणाली ‘जीवन-विज्ञान' के रूप में उजागर की। जीवन-विज्ञान प्रयोग का लक्ष्य है-बचपन से ही अहिंसा की आस्था उत्पन्न करना। जब हिंसा की आस्था उत्पन्न हो जाती है, यह धारणा बन जाती है कि हिंसा के बिना काम नहीं चलता, फिर उसे बदलना बहुत जटिल हो जाता है। बचपन के संस्कार इतने प्रभावी होते हैं कि बाद में आने वाले संस्कार उनके सामने टिक नहीं पाते। इसलिए बचपन से ही अहिंसा की आस्था का निर्माण किया जाये। 36 बाल मनोविज्ञान में भी यह स्वीकृत है। शिक्षा एवं अहिंसा के संबंध में गांधी ने कहा-शिक्षा में जो दृष्टि पैदा करनी है वह परस्पर के नित्य संबंध की है। जहाँ वातावरण अहिंसारूपी प्राणवायु द्वारा स्वच्छ और सुगन्धित हो चुका है वहाँ छात्र और छात्राएँ सगे भाई-बहिनों के समान बिचरती होंगी। वहाँ विद्यार्थियों और अध्यापकों के बीच पिता-पुत्र का संबंध होगा। एक दूसरे के प्रति उदार होगा, ऐसी स्वच्छ वायु ही अहिंसा का नित्य सतत् पदार्थ पाठ है। ऐसे शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के वातावरण में पले हुए विद्यार्थी निरन्तर सबके प्रति उदार होंगे तथा सहज ही समाज सेवा हेतु लालायित होंगे। उनके लिए सामाजिक बुराइयों-दोषों का अलग प्रश्न नहीं होगा। वह अहिंसारूपी अग्नि में भस्म हो गया होगा। 37 कथन का स्पष्ट आशय मूल्यों की प्रतिष्ठा और उसके विकास से है। उदारता, परस्परता, समाजसेवा जैसे सामाजिक मूल्य शिक्षा द्वारा उदात्त बनें यह उनकी आंतरिक अभिलाषा थी। गांधी ने नई तालीम की बात कही उसका संबंध मूल्य विकास से था। मूल्यों की प्रतिष्ठा जीवन में कैसे हो? इस पहेली को बुझाते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने विशेषरूप से 'जीवन-विज्ञान' की संयोजना की है। जीवन-विज्ञान के तहत् मूल्यों का प्रशिक्षण समग्र व्यक्तित्व विकास का सर्जक है। यह शिक्षा के क्षेत्र में अहिंसा का प्रयोग है। शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थी में अहिंसा का संस्कार निर्मित होना जरूरी है। यदि बौद्धिकता के साथ अहिंसा की चेतना नहीं जागती है तो उसका सबसे पहले दुरूपयोग अपने प्रति होता है। अपने प्रति अन्याय करने वाला सामाजिक परिवर्तन की सशक्त कड़ी : मूल्य बोध / 337
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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