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________________ शांत होता है तो आवेग शांत हो जाता है, जब आवेग शांत होता है तो श्वास स्वयं शांत हो जाता है। यह चेतना के रूपांतरण का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। इससे आवेश जनित अनेक समस्याओं का समाधान सुगम बन जाता है। वृश्विक्ष समवृत्ति श्वास प्रेक्षा में नाड़ी तन्त्रीय असंतुलन पर सीधा प्रहार होता है जो मानव की दूषित एवं हिंसक प्रवृत्तियों का कारण बनता है । महाप्रज्ञ हिंसा के कारणों की श्रृंखला में एक बड़ा कारण नाड़ीतन्त्रीय असंतुलन को बताते है । नाड़ी तन्त्रीय असंतुल से व्यक्ति अकारण हिंसा पर उतारू हो जाता है, मारने में मजा आने लगता है। मारने का कोई प्रयोजन नहीं है, न कोई अपराध, न कोई वैरभाव, न कोई द्वेष और न कोई बदला लेने की भावना, कुछ भी नहीं, बस मारने में मजा आने लग गया। इस समस्या का उपचार समवृत्ति श्वास प्रेक्षा को बतलाया । इस प्रक्रिया में दोनों नथुनों से क्रमशः श्वास ग्रहण किया जाता है। यानी दाएँ से लेकर बायें से निकालना फिर बायें से लेकर दाएं से निकालना जिससे श्वास का रेचन किया जाता है पुनः उसी से श्वास लिया जाता है । इस प्रयोग से मस्तिष्क का दायां और बायां हिस्सा संतुलित बनता है। हठयोग की भाषा में इड़ा और पिंगला नाड़ी संतुलित होती है। सिंपथेटिक नर्वस सिस्टम एवं पेरासिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम-अनुकंपी और परानुकंपी-दोनों नाड़ी तंत्रों में संतुलन स्थापित होता है । 25 संतुलित नाड़ी तंत्र व्यक्ति को अकारण हिंसा में प्रवृत्त नहीं होने देता । समवृत्ति श्वास प्रेक्षा के वैज्ञानिक आधार एवं परिणाम को प्रस्तुति मिली। जब बाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब दायां मस्तिष्क प्रभावित होता है और जब हम दाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब बायां मस्तिष्क प्रभावित होता है, सक्रिय बनता है । मस्तिष्कीय कार्यक्षमता का समुचित प्रयोग करने दृष्टि जागृत होती है । संवृत्ति श्वासप्रेक्षा के प्रयोग को अखण्ड व्यक्तित्व विकास का प्रयोग स्वीकारा गया है। यह अहिंसक व्यक्तित्व विकास का नियामक प्रयोग है। हृदय परिवर्तन की प्रक्रिया को प्रस्तुत प्रयोग नाड़ी तंत्रीय परिवर्तन के जरिये घटित करता है । शरीर प्रेक्षा एक प्रयोग 'सप्त धातुमयं शरीरं' शरीर सप्त धातुओं से बना है । आयुर्वेद की इस परिभाषा से भिन्न आज के विज्ञान की खोज में शरीर सोलह तत्त्वों से बना है। कुछ निराशावादी लोगों ने शरीर को अपवित्र नाशवान् बताया। अध्यात्म के आचार्यों ने शरीर को रहस्यमय बतलाते हुए परम लक्ष्य (मुक्ति) का सेतु बतलाया । महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान की प्रविधि में शरीर दर्शन को परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया है। पैर के अंगूठे से लेकर मस्तिष्क तक शरीर के प्रत्येक भाग- अन्तरावयव पर चित्त का जागरूक दर्शन ही सरल शब्दों में शरीर प्रेक्षा है । इस प्रयोग से शरीर के प्रति जागरूकता बढ़ती है जो भीतर से आने वाली बुराई के प्रवाह को रोकती है और उपशम की क्रिया करते-करते व्यक्ति एक दिन उन बुराइयों को क्षीण करने की स्थिति तक पहुँच जाता है । 126 शरीर एक ऐसी रसायन शाला है जिसमें असंख्य प्रकार के रसायन पैदा होते हैं । ये ही रसायन व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व के नियामक बनते हैं । व्यक्ति में उठनेवाली हिंसा, आवेश, आक्रमण का जिम्मेदार आन्तरिक विद्युत् तंत्र और प्राणतंत्र का असंतुलित संचरण है । इस प्रयोग की दक्षता 332 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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