SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवहार बदल जाता है। जैन धर्म ने अहिंसा, अपरिग्रह पर बहुत बल दिया। दूसरे धर्म भी अहिंसा और मैत्री पर बल देते हैं। इतना बल देने पर भी अहिंसा का विकास जितना होना चाहिए था उतना नहीं हुआ। प्रश्न है क्यों नहीं हुआ? कारण एक ही है कि जीवन में अहिंसा उतरती है चेतना के बदल जाने पर, जीवन में अपरिग्रह उतरता है चेतना का रूपान्तरण हो जाने पर। अर्थात् अहिंसा चेतना के रूपान्तरण का परिणाम है। असंग्रह चेतना के बदल जाने का एक व्यक्त रूप है। जब तक यह परिवर्तन नहीं होता, अहिंसा और अपरिग्रह के विकास की संभावना नहीं हो सकती। जो व्यक्ति ध्यान करने वाला है, जिसकी चेतना बदली है, उसकी अवस्था भी बदल जाएगी। ध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति समाज को या किसी व्यक्ति को अपने गुलाम की भाँति नहीं देखता, नौकर को नौकर और कर्मचारी की भाँति नहीं देखता, उसकी दृष्टि बदल जाती है। अधिकांश कलह इसलिए होता है कि अहंकार को चोट पहुँचती है। पारिवारिक झगड़ों, कर्मचारियों के झगड़ों, अपने नौकरों के झगड़ों का मुख्य कारण है-दूसरों के अहंकार को चोट पहुँचाना। पर जिसकी चेतना बदल चुकी वह अपनी ओर से दूसरों को चोट पहुँचा ही नहीं सकता। वे ध्यानकर्ता के सन्मुख आत्मान्वेषण का पहलू रखते-ध्यान साधक को सोचना चाहिए कि उसका क्रोध कितना कम हुआ, व्यवहार कितना बदला, दूसरों को मूल्य देने की भावना कितनी जगी, दूसरों को अपने समान समझने और वैसा व्यवहार करने की वृत्ति कितनी विकसित हुई। 20 सकारात्मक उत्तर परिवर्तन का द्योतक है। इसी आधार पर प्रेक्षाध्यान वृत्तियों के उदात्तीकरण की प्रक्रिया है। उदात्तीकरण एक ऐसी रक्षा-युक्ति है, जिसमें समाज विरोधी अनैतिक कार्यों को अच्छे कार्यों में बदला जा सकता है। स्वयं का दर्शन करने वाला अपने व्यक्तित्व का वांछित विकास कर सकता है, दृष्टि का निर्माण कर सकता है। प्रेक्षाध्यान का ध्येय सूत्र है 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' अर्थात् आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। आत्म-दर्शन, आत्म निरीक्षण का प्रयोग निषेधात्मक भावों को समाप्त कर विधायक भावों को उजागर करता है। फलस्वरूप आवेग और आवेश जनित अथवा कषाय जनित कलह एवं हिंसा पर नियंत्रण हो जाता है। इसे जीवन निर्माण के संदर्भ में देखें। जीवन निर्माण का सूत्र है ध्यान। ध्यान का प्रयोग जीविका के लिए नहीं है, जीवन निर्माण के लिए है। जब जीवन का निर्माण होता है तब जीविका की बात भी पीछे नहीं रहती। ध्यान के द्वारा दक्षता बढ़ती है, शक्ति बढ़ती है, स्मृति बढ़ती है, चातुर्य आता है किंतु इन सबसे महत्त्वपूर्ण जो उपलब्धि ध्यान के द्वारा प्राप्त होती है, वह है जीवन-निर्माण। जीवन का निर्माण होता है तो शान्तसहवास की समस्याएँ, आग्रह और रूचि-भेद की समस्याएँ, विचार भेद और विरोधाभास की समस्याएँ, निषेधात्मक भाव की समस्याएँ समाहित हो जाती हैं। ध्यान से विधायक विचार का, मैत्री भाव का, सबके प्रति सम्मान की भावना का और सामंजस्यपूर्ण चेतना का जागरण होता है। जब चेतना की यह स्थिति बनती है तब पारिवारिक और सामाजिक जीवन सुखद हो जाता है। ध्यान का प्रयोग अहिंसा विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। कोरी हिंसा ही हमारे भीतर विद्यमान नहीं है। अहिंसा भी हमारे भीतर विद्यमान है। हमारी मस्तिष्कीय प्रणाली में दो प्रणालियाँ हैं-क्रोध आने की प्रणाली हमारे मस्तिष्क में है तो क्रोध पर नियन्त्रण पाने की प्रणाली भी हमारे मस्तिष्क में है।....ध्यान का प्रयोग इसीलिए है कि हम अहिंसा को जगा सकें और हिंसा को सुला सकें। आचार्य महाप्रज्ञ ध्यान के प्रयोग में वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजते थे। उनका यह 330 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy