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________________ अहिंसात्मक नियंत्रण पाने के लिए कटिबद्ध थे। शांति-सेना की उनकी कल्पना एक मात्र अहिंसक प्रक्रिया पर टिकी थी। इसका सेतु बने अहिंसा और शांति की आस्था से परिपूर्ण शांति-सैनिक। अतः शांति सैनिक और शांति सेना में अद्वैत भाव का निदर्शन है। अहिंसा सार्वभौम अहिंसा का संगठनात्मक स्वरूप विकसित हो यह युग की अपेक्षा है। आज अहिंसा का प्रश्न एक नए संदर्भ में उपस्थित हो रहा है, वह संदर्भ 'अणु-अस्त्र' का है। आणविक अस्त्रों की विभीषिका ने अहिंसा को फिर से तेजस्वी बनने की चुनौती दी है। धार्मिक दृष्टि से अहिंसा पर मंथन प्राचीन काल से चलता आ रहा है। एक समय था जब अहिंसा का मूल्य केवल धार्मिक था, किन्तु आज उसका सामाजिक मूल्य भी है। संपूर्ण मानव जाति की समाप्ति का स्वर सुन हर आदमी काँप उठता है। मानवजाति का अस्तित्व खतरे से खेल रहा है। इस स्थिति में यह अत्यावश्यक हो गया है कि अहिंसा को नये संदर्भ में देखा और समझा जाए। हिंसा की भयानकता को नियंत्रित करने की दिशा में ठोस कदम उठाया जाये। इसकी क्रियान्विति में राष्ट्र संत तलसी द्वारा निर्दिष्ट अहिंसा के अनुसंधान, प्रशिक्षण और प्रयोग का प्रारूप 'अहिंसा सार्वभौम के रूप में प्रतिष्ठित हआ। अहिंसा सार्वभौम की पृष्ठभूमि में चिंतन का सघन प्रवाह रहा है। आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में-अहिंसा की व्याख्या ज्यादा हो रही है। उसमें प्रयोग नहीं हो रहे हैं इसलिए अहिंसा के उपदेश जनता को आकर्षित नहीं कर रहे हैं। हिंसक शास्त्राशस्त्रों का शोध, प्रयोग और प्रशिक्षण के पीछे हजारों-हजारों वैज्ञानिक और प्रशिक्षक लगे हुए हैं। प्रतिदिन लाखों-लाखों पुलिस के जवानों और सैनिक का अभ्यास चलता रहता है। किन्तु अहिंसा के प्रशिक्षण की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है और न कहीं उसके प्रति कोई आकर्षण उत्पन्न करने की योजना है। ऐसी स्थिति में अहिंसा के विकास की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। अहिंसक समाज की रचना मात्र एक स्वप्न बनी हुई है उसे साकार करने के लिए अहिंसा सार्वभौम एक परिकल्पना है, एक साधन है, एक उपाय है। स्पष्ट रूप से अहिंसा सार्वभौम का संबोध अहिंसा के विकास की संभावनाओं को उजागर करता है। अणुव्रत के मंच से अहिंसा सार्वभौम का स्वर बुलंद हुआ। प्रश्न उठा अहिंसा का प्रारंभ कहाँ से होगा? समाहित करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-अहिंसा एक सीधी रेखा है। उसका आरंभ बिंदु हमें खोजना है। अहिंसा का आरंभ बिन्दु है व्यक्ति। अहिंसा का आरंभ व्यक्ति से होता है। व्यक्तिव्यक्ति से, बिन्दु-विन्दु से एक रेखा बनेगी और वह रेखा बढ़ते-बढ़ते महारेखा बन जायेगी। महारेखा सार्वभौम और जागतिक होगी। अहिंसा सार्वभौम और जागतिक हो जाएगी। किन्तु क्या बिन्दु के बिना रेखा निर्माण किया जाना संभव होगा? कभी संभव नहीं है। अणुव्रत आन्दोलन का यह चिंतन रहा-व्यक्ति सुधरेगा तो समाज सुधरेगा, समाज सुधरेगा तो राष्ट्र सुधरेगा, राष्ट्र सुधरेगा तो जगत् सुधरेगा। हमें पहले बिन्दु को पकड़ना होगा। पहले बिन्दु को पकड़े बिना यदि अहिंसा सार्वभौम की बड़ी कल्पना को लेकर चलेंगे तो बहुत सार्थक बात नहीं होगी। अहिंसा सार्वभौम की कल्पना व्यक्ति पुरस्सर मूल इकाई से आरम्भ होकर जागतिक क्षितिज में व्याप्त होती है। अहिंसा सार्वभौम और अणुव्रत के संबंध को स्पष्ट करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-एक समय था अहिंसा के कंधे पर चढ़कर हिंसा जी रही थी और आज हिंसा के कंधे पर चढ़कर अहिंसा जीने का प्रयास कर रही है। सहारा हिंसा दे रही है। इस स्थिति में, अन्य विकल्प के अभाव में समूचे संसार में अहिंसा का स्वर मुखरित अहिंसा का संगठनात्मक स्वरूप / 303
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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