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________________ जागता कायदा कहें, राम कहें, रहमान कहें, किसी भी नाम से पुकारें, मगर उसकी शक्ति का उपयोग तो आपको करना ही है। ऐसा आदमी किसी को मारेगा नहीं, बल्कि खुद मरकर जीतेगा और जी जायेगा। सफलता के लिए नियमों के पालन पर बल दिया . सेवक अपने साथ कोई हथियार न रखे। . वह अपने बदन पर ऐसी कोई निशानी रखे, जिससे फौरन पता चल जाए कि वह शांतिदल का मेम्बर है। . सेवक के पास घायलों वगैरह कि सार-संभाल के लिए तुरन्त काम देने वाली चीजें रहनी चाहिए। जैसे पट्टी, कैंची, छोटा चाकू, सूई वगैरा। . सेवक को ऐसी तालीम मिलनी चाहिये, जिससे वह घायलों को आसानी से उठाकर ले जा सकें। . जलती आग को बुझाने की, बिना जले या झुलसे आगवाली जगह में जाने की, ऊपर चढ़ने और उतरने की कला सेवक में होनी चाहिए। . अपने मुहल्ले के सब लोगों से उसकी अच्छी जान-पहचान होनी चाहिए। यह खुद ही एक सेवा है। . उसे मन ही मन राम का नाम बार-बार जपते रहना चाहिये और इससे मानने वाले दूसरों को भी ऐसा करने के लिए समझाना चाहिए। अहिंसक सेवा-दल अथवा शांतिदल की इस मीमांसा से स्पष्ट है कि गांधी के विचार अहिंसा को संगठनात्मक रूप देने में कितने प्रखर थे। उसी का विकसित रूप शांति सेना के रूप में प्रकट हुआ। शांति सेना का उद्देश्य शांति सेना का स्पष्ट उद्देश्य था हिंसा के विरोध में अहिंसक नागरिक शक्ति को संगठित एवं सक्रिय करना। अशांति के समय शान्ति के लिए कार्य करना एवं शान्ति के समय सृजन एवं रचना का कार्य करना। इसका दूरगामी उद्देश्य था . शान्तिमय समाज की स्थापना करना। . समाज में शांति का मूल्य स्थापित करना। . समाज में सज्जन शक्ति को संगठित करना। • समाज में भ्रातृत्व, सौहार्द एवं सेवा भावना को स्थापित करना। • दानव शक्ति को कमजोर एवं प्रेम शक्ति का संवर्धन करना। ये उद्देश्य शांति सेना की कार्य पद्धति को स्पष्ट करते हैं। शांति सेना के विचार का स्पष्ट उल्लेख गांधी के इस कथन में है- 'मैंने एक ऐसे स्वयं सेवकों की सेना बनाने की तजबीज रखी थी, जो दंगों, खासकर साम्प्रदायिक दंगों को शान्त करने में अपने प्राणों तक की बाजी लगा दे। विचार यह था कि यह सेना पुलिस का ही नहीं बल्कि फौज तक का स्थान ले ले। मौलिक पहचान 1. शांति सेना का सदस्य पुरुष हो या स्त्री अहिंसा में उसका जीवित विश्वास होना चाहिए। अहिंसा का संगठनात्मक स्वरूप / 301
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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