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________________ लिए जैनी होना अनिवार्य नहीं है। जैन परम्परा की भावना के अनुसार अणुव्रती वह बन सकता है जो सम्यक् दृष्टिवाला हो। इसीलिए अणुव्रतों को सम्यकत्वमूलक कहा गया है। इस आंदोलन में यह भावना नहीं है कि जैन दृष्टि को स्वीकार करने वाला ही अणुव्रती बने। इसके सम्यक् दर्शन की परिभाषा है- अहिंसानिष्ट दृष्टि । अणुव्रती वह बन सकता है जिसकी अहिंसा में निष्ठा हो । यह आंदोलन सब धर्मों को अहिंसा में केन्द्रित करता है। अहिंसावादियों का सार्वजनिक मंच है । अहिंसानिष्ठ कोई भी व्यक्ति इसे अंगीकार कर सकता है । अहिंसक की कसौटी उसका व्यवहार है । महाप्रज्ञ कहते हैं- व्रत नहीं दिखते, व्रती का व्यवहार दीखता है। जो क्रूर नहीं है, उचित मात्रा से अधिक संग्रह नहीं करता है, अपने पड़ौसी या सम्बन्धित व्यक्ति से अनुचित व्यवहार नहीं करता है, अपने स्वार्थ को अधिक महत्त्व नहीं देता है, अपनी सुख-सुविधा और प्रतिष्ठा के लिए दूसरों की हीनता नहीं चाहता है, दूसरों के बुद्धि-दौर्बल, विवशता से अनुचित लाभ नहीं उठाता है - नैतिकता का मूल्यांकन करते हुए अपने आप पर नियन्त्रण रखता है । ये वृत्तियां ही अणुव्रती होने का स्वयंभू प्रमाण है । " जो चिंतनशील आदमी है, अपने जीवन को सुखी और शांत बनाना चाहता है, संतोष का जीवन जीने का आकांक्षी है, उसे अणुव्रती बनना ही होगा । अणुव्रती हमेशा सच्चाई को सामने लेकर चलता है। अणुव्रती का नैतिक व्यवहार ही आंदोलन की सफलता का प्रतीक है। अणुव्रत की अनुगूँज अणुव्रत आंदोलन गरीब की झोपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुँचा । आंदोलन के सकारात्मक परिणाम के संबंध में शीर्ष व्यक्तियों के विचारों की झलक मात्र पर्याप्त है । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा- 'अणुव्रत आन्दोलन का उद्देश्य नैतिक जागरण और जन-साधारण को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करना है ।' डॉ. एस. राधाकृष्णन् की टिप्पणी थी- 'इस समय हमारे देश में अणुव्रत आन्दोलन ही एक ऐसा आन्दोलन है, जो जनता के आत्म बल को जगा रहा है।' स्पष्ट है राजनीति से जुड़े लोगों ने भी इसे समझा। आंदोलन के विषय में पं. जवाहर लाल नेहरू का अभिमत था - हमें अपने देश का मकान बनाना है तो उसकी बुनियाद गहरी होनी चाहिए ।..... गहरी बुनियाद चरित्र की होती है । देश में बड़े-बड़े काम करने हैं। उसके लिए मजबूत दिल, दिमाग और अपने को काबू में रखने की शक्ति चाहिए। ये बातें हमें सीखनी है। इन सबकी बुनियाद चरित्र है कितना अच्छा काम अणुव्रत आन्दोलन में हो रहा है। इस आंदोलन से श्रीमती इन्दिरा गांधी भी प्रभावित थी, उसने कहा- 'अणुव्रत आन्दोलन आज का नहीं है, यह वर्षों से चलाया जा रहा है । यह कहता है हमारा चारित्र उन्नत हो । देश के लोग चरित्रवान बनें। हमें देश को महान् बनाना है । महान् बनाने के लिए चरित्रवान् नागरिक चाहिए। चरित्रवान् नागरिक वह होता है जिसमें एकता की भावना हो, जिसमें आत्म संयम । बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों एवं श्रद्धाशील व्यक्तियों ने इस आंदोलन को युग की अपेक्षा बतलाया । आज पूरी दुनिया में अनैतिकता का कोहरा छाया है। मूल्यों का तेजी से पतन हो रहा है । ईमानदारी, विश्वास और मैत्री की अनेक परम्पराएं टूटती जा रही हैं । इस नैतिक दिवालियेपन पर अंकुश लगे, जन जीवन में सत्य - निष्ठा और ईमानदारी का समावेश हो इस दिशा में अणुव्रत आंदोलन सतत् प्रयत्नशील है। हाल ही में अणुव्रतशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा यात्रा में जन-जन की नैतिक चेतना जगाने के व्यापक उपक्रम किये हैं। इस दौरान उनका अनुभव रहा-अहिंसा यात्रा में हमने जन समस्याओं का गहन अध्ययन किया तो पाया कि सब जगह एक ही विभीषिका है- भ्रष्टाचार 298 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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