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________________ जीवन है।' संयम का अर्थ है-वृतियों का नियमन, वाणी, मन, आदि का नियंत्रण। यह एक सीमा करता है, व्यवस्था देता है। इस संयमात्मक सीमा या व्यवस्था का स्वीकरण ही इसकी प्रकृति है। आचार्य महाप्रज्ञ की भाषा में इस घोष को अगर आज सभी अपने जीवन-निर्माण का सूत्र बना लें तो उसका कल्याण तो होगा ही, समाज और राष्ट्र का भी बहुत भला होगा। जहाँ असंयम है, वहाँ भय है और जहाँ संयम है, वहाँ अभय और शांति है। संयम आध्यात्मिक तत्त्व है। नैतिक मूल्यों के विकास हेतु उसकी अनिवार्यता है। समाज में जब तक संयम का मूल्यांकन नहीं होगा। नैतिक मूल्यों का विकास भी प्रश्नायिक बना रहेगा। स्पष्ट शब्दों में महाप्रज्ञ ने बताया-भ्रष्टाचार की समस्या को केवल कानून, प्रवचन और उपदेश के द्वारा नहीं सलझाया जा सकता। उसके लिए आवश्यक है संयम की चेतना को जागृत करने का प्रशिक्षण। मूल्य आधारित शिक्षा का केन्द्रीय तत्त्व है संयम। उसका प्रशिक्षण ही मूल्यों के विकास में सहायक हो सकता है। समाज के चरित्रबल का अर्थ है-नैतिक मूल्यों का विकास। उसका प्रमुख साधन है संयम। वर्तमान स्थिति में संयम का मूल्य भी कम नहीं है। उपभोग सामग्री भी सीमित है। आबादी बढ़ रहीं है। संतुलन बिगड़ रहा है। यदि समृद्ध और समर्थ लोग उपभोग सामग्री का उपभोग कम करें तो संतुलन स्थापित हो सकता है। वह संतुलन सामूहिक मनोबल को बढ़ाने में सहयोगी बन सकता है। तथ्यतः अणुव्रत के घोष ने जन-चेतना को जगाने में अहं भूमिका निभाई है। व्यापक कार्य प्रस्तुत आंदोलन ने जन-जागृति मूलक सामाजिक उत्थान के सार्थक प्रयत्न किये हैं। बिना उनको जाने अणुव्रत की चर्चा अधूरी रहेगी। पूर्णता की कड़ी में कतिपय तथ्यों का विमर्श प्रासंगिक बुझाता है। पद्यात्रा मुनि का जीवन व्रत है यात्रा। जब यात्रा के साथ विराट् कार्य की संयोजना जुड़ जाती है तो वह 'तिन्नाणं तारयाणं' को साकार करती है, जो साधु का विशेषण है। अणुव्रत अनुशास्ता ने आंदोलन के व्यापक प्रसार की मानसिकता से प्रलम्ब यात्रापथ का चयन किया। इसे पुष्ट करता है यह चर्चा प्रसंग-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने दो घंटे के वार्तालाप के दौरान आचार्य तुलसी से निवेदन किया-'आज देश में सत्य और अहिंसा के प्रचार की बहुत बड़ी आवश्यकता है। शांति की सारे संसार को आवश्यकता है।' इसके बाबत आचार्य तुलसी की विराट् दृष्टि थी-'मैं अपने संघ की सारी शक्ति सत्य और अहिंसा के प्रचार में लगाना चाहता हूँ। मुझे उस दिन हार्दिक प्रसन्नता होगी जिस दिन जनता में सत्य और अहिंसा मूर्तिमान बनेगी। मेरे दिल्ली आने का यही उद्देश्य है।'' अपने दिल्ली प्रवास में अनुशास्ता ने अणुव्रत के क्षेत्र में सघन कार्य किया जिसकी गूंज राष्ट्रपति भवन तक पहुंची। • जयपुर से कानपुर अणुव्रत शास्ता की उतर प्रदेश यात्रा अपने आप में अणुव्रत यात्रा का पर्याय थी। गाँव-गाँव, नगर, डगर अणुव्रत आंदोलन की अर्थात्मा से परिचित बनें। अणुव्रत के नियमों को लोगों ने बड़े जिज्ञासु भाव से ग्रहण किया। अनेक लोग प्रश्न करते-'बड़ा धाम कहाँ है? बाबा कहाँ से आ रहे हैं? आप कहाँ जा रहे हैं? क्यों जा रहे हैं?' आदि जिज्ञासाओं का उत्तर होता-'हम जयपुर से आ रहे हैं, कानपुर जाना है, धर्म का उपदेश देते हैं, अणुव्रत का प्रचार करते हैं, धाम कहीं भी 292 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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