SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वदेशी आंदोलन राष्ट्र पिता महात्मा गांधी द्वारा संचालित विभिन्न अहिंसक आंदोलन की एक शक्तिशाली कड़ी है-स्वदेशी आंदोलन । इसकी बुनियाद भ्रातृत्व प्रेम के अहिंसक आदर्श पर टिकी है। इसका उभय पथी स्वरूप-सत्याग्रह का कार्यक्रम एवं आजादी का आंदोलन रूप है। इसका सक्रिय प्रयोग 1921 से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक सत्याग्रह आंदोलन में किया गया। स्वदेशी आंदोलन को उन्होंने बहुत महत्त्व दिया और इसे आजादी पाने का ब्रह्मास्त्र करार दिया। स्वदेशी आंदोलन की पृष्ठभूमि तात्कालीन परिस्थितियों में इसकी उपादेयता को उजागर करती है। अंग्रेजी हुक्मरानों की आर्थिक नीति के चलते भारत में विदेशी माल का आयात स्वतंत्र रूप से होने से देशी उद्योग धंधे प्रायः नष्ट होने लगे, विदेशी उद्योग धन्धों की प्रतिस्पर्धा से देश के उद्योग धंधों को बचा पाना कठिन हो गया। भारतीय अर्थ व्यवस्था चरमराने लगी। अकाल, प्राकृतिक प्रकोप, विदेशी कंपनियों का फैलाव, उद्योगीकरण ने लोगों की रोजीरोटी पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। स्वदेशी वस्तुएं महंगी हो गयी। विदेशी वस्तुएँ हमारी संस्कृति, अर्थ व्यवस्था पर हावी हो गयी। परतंत्रता और नाजुक आर्थिक स्थिति का मुख्य कारण कुटीर उद्योगों का समूल विनाश होना था। गांधी ने महसूस किया कि आर्थिक विपन्नता में भारत अपनी आजादी की लड़ाई सुचारु रूप से नहीं चला सकता। इस गंभीर चिंतन-मंथन के साथ स्वेदशी आंदोलन का आविर्भाव हुआ। 'स्वदेशी' सामासिक शब्द है। स्वदेशी स्वदेशी, स्व यानी अपने, देशी यानी देश, समाज, गाँव, पड़ोस का। इसका स्पष्ट अर्थ है अपने देश का अर्थात् अपने देश में बनाई वस्तुओं को व्यापक रूप से अपेक्षाकृत अधिक वांछनीय मानना-अपनाना। स्वेदशी एक धार्मिक नियम है जिसका पालन उससे होनेवाले सारे शारीरिक कष्टों के बावजूद मननीय है। गांधी ने बल दिया कि स्वदेशी हमारे अन्दर की वह भावना है, जो हम पर प्रतिबंध लगाती है कि हम अपेक्षाकृत अधिक दूर के वातावरण को छोड़कर पास के वातावरण का उपयोग करें और उसकी सेवा करें। स्वदेशी एक भावना है. 'स्पिरिट' है। उसका अर्थ है दूर की चीजों की अपेक्षा अपने आसपास की, नजदीक की ही चीजें काम में लेने का नियम बनायें। स्वदेशी की धारणा में यह विचार निहित है कि इसकी शुरुआत तो स्थानीय स्तर से होनी चाहिए, किन्तु इसका विस्तार क्रमशः विश्वस्तर तक होना चाहिए, क्योंकि स्वदेशी धर्म का अन्तिम उद्देश्य सम्पूर्ण मानवता की सेवा है। गांधी ने स्वदेशी आंदोलन के तहत् शपथ ली कि 'ईश्वर को साक्षी मानकर मैं गम्भीरता पूर्वक घोषित करता हूँ कि आज से मैं अपने व्यक्तिगत जरूरतों के लिए भारत की रूई, रेशम या ऊन से बने कपड़े का ही उपयोग करूँगा; और मैं विदेशी कपड़े का सर्वथा त्याग कर दूंगा तथा मेरे पास जो विदेशी कपड़े होंगे, उन्हें नष्ट कर दूंगा।' शपथ में स्वेदशी आंदोलन के दो मुख्य पक्ष उजागर होते हैं- निषेधात्मक और भावात्मक। निषेधात्मक पक्ष में विदेशी वस्त्रों के उपयोग तथा विदेशी वस्त्र की दुकानों के बहिष्कार एवं शराब की दुकानों की बन्दी का नारा दिया गया। सत्याग्रही कार्यकर्ता इसमें जुट गये। इस कार्य को आत्मधर्म जानते हुए कांग्रेस के प्रमुख नेता-मोतीलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य जैसे अनेक नेताओं ने अपने विदेशी पोशाकों की होली जलाई। असंख्य लोगों ने इसका अनुसरण किया। शहरों-गांवों में विदेशी वस्त्रों, वस्तुओं का संग्रह कर सार्वजनिक स्थलों पर जलाया गया। 286 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy