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________________ अपना प्रभुत्व जमा सकता है। आजादी की पृष्ठभूमि में असहयोग आंदोलन का पूरी ताकत के साथ प्रयोग किया गया आज पुनः पाश्चात्य संस्कृति के प्रभुत्व और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में असहयोग आंदोलन को बुलन्द करने की जरूरत है। राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक संदर्भ में असहयोग आंदोलन का अभिनव प्रयोग अन्याय, शीषण, अनैतिकता, अकर्मण्यता के विरुद्ध किया जाये तो अनेक समस्याओं का समाधान होगा और एक अहिंसा प्रधान शांतिमय परिवेश की परिकल्पना साकार बनेगी। सविनय-अवज्ञा आंदोलन अहिंसक आंदोलन की एक शक्तिशाली कड़ी है-सविनय-अवज्ञा। गांधी ने इसका सूत्रपात आजादी के आंदोलन को अधिक सक्रियता प्रदान करने के लिए किया था। अहिंसा और सत्य की बुनियाद पर निर्मित यह आंदोलन देश की आकांक्षाओं को पूरा करने में कामयाब बना। इस आंदोलन की पृष्ठभूमि को प्रकट करते हुए गांधी ने मानो अन्तरव्यथा को शब्दों में उडेल दिया-राजनीतिक दृष्टि से हमारी स्थिति गुलामों से अच्छी नहीं है। हमारी संस्कृति की जड़ ही खोखली कर दी गयी है। हमारे हथियार छीनकर हमारा सारा पौरुष अपहरण कर लिया गया है। हमारा आत्मबल तो लुप्त हो ही गया था, हम सबको निःशस्त्र करके कायरों की भाँति निःसहाय और निर्बल बना दिया गया। सविनय-अवज्ञा की योजना इन बुराइयों के मुकाबले के लिए है। इस कथन से सविनय-अवज्ञा की अनिवार्यता प्रकट होती है। __ भारतीय चेतना को निर्बल बनाने वाले नियम विदेशी सत्ता द्वारा थोपे जा रहे थे जिनका प्रतिकार अस्तित्व रक्षा के लिए अनिवार्य बन गया। इसकी पुष्टि गांधी के कथन में झलकती है। हमारा अन्तःकरण पूर्वक विश्वास है कि 1919 के भारतीय दण्ड विधि (संशोधन) विधेयक संख्या 1 और दण्ड विधि (आपातिक अधिकार) विधेयक संख्या 2 नामक विधेयक अन्यायपूर्ण, स्वातन्त्र्य तथा न्याय के सिद्धांत और व्यक्तियों के बुनियादी अधिकारों के लिए; जो सम्पूर्ण समाज तथा स्वयं राज्य की सुरक्षा के आधार हैं, घातक तथा विध्वंसकारी हैं। अतः हम संकल्प करते हैं कि यदि इन विधेयकों को कानून का रूप दिया गया तो जब तक इनको वापिस नहीं ले लिया जायेगा तब तक हम इन और, इसके बाद नियुक्त होने वाली समिति जिन्हें इस योग्य समझेगी, ऐसे कानूनों की सविनय-अवज्ञा करते रहेंगे; और साथ ही हम संकल्प करते हैं कि इस संघर्ष में हम पूरी निष्ठा के साथ सत्य का पालन करेंगे और हिंसा नहीं करेंगे-किसी की भी जान-माल को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचायेंगे। मन्तव्य से स्पष्ट है कि सविनय-अवज्ञा की अनिवार्यता किस कदर बन चुकी थी। स्वराज्य की मांग के संबंध में वायसराय लॉर्डरीडिंग का फरमान था स्वराज्य तो सिर्फ दो ही उपायों से मिल सकता है-एक तलवार और दूसरा दान।.....पर गांधी का ठीक इसके विपरीत यह दृढ़ विश्वास था कि इन दो के अलावा तीसरा रास्ता भी है और वह है सविनय कानून-भंग का।। साथ ही संघर्ष का स्वरूप अहिंसात्मक रहे इसके लिए भी गांधी संकल्प बद्ध थे। सविनय अवज्ञा शब्दार्थ अहिंसा के गूढ़ भाव का द्योतक है। अनैतिक सरकारी कानूनों को भंग करना। सविनय यानी कहीं भी अविनय का भाव न हो। कानून (सरकारी और लौकिक) की अवज्ञा, उसका भंग, लेकिन तभी जबकि सत्य की निष्ठा के कारण हो और वह अवज्ञा सर्वथा विनम्र और भद्र हो। अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 283
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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