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________________ साथ सहयोग करने से इनकार कर दें। असहयोग आंदोलन का सूत्रपात सन् 1920 में गांधी के नेतृत्व में हुआ।" जिसका एकमात्र लक्ष्य देश की आजादी था। हिन्द स्वराज और इंडियन होम रूल में असहयोग को परिभाषित करते हुए गांधी ने लिखा- शांतिपूर्वक विरोध एवं पीड़ा सहकर अपने अधिकारों को सुरक्षित करने की यह एक विधि है। जब मैं कोई कार्य करने के लिए मना करता हूँ वह मेरी अन्तरात्मा के लिए अरूचिकर है, मैं आत्मा की शक्ति को काम में लेता हूँ। असहयोग आंदोलन का मूल मंत्र है-अपनी मान्यता से विपरीत सिद्धांत का असहयोग। इसके द्वारा असामाजिक तत्व, शोषक दुष्टता, बुराइयों का सामूहिक प्रतिकार सुगमता से किया जा सकता है। भारत वर्ष में स्वतंत्रता आंदोलन में इसकी अहं भूमिका रही। ऐतिहासिक संदर्भ में देखें तो असहयोग भारत की प्राचीन विधा है। भारतीय राजनैतिक व्यवस्था में ऐसा प्रचलन था कि जब राजा प्रजा पर अधिक अन्याय करता तब प्रजा राजा के राज्य से निकलकर जंगल जाने की धमकी देती और जंगल जाने पर वह कर देना बंद कर देती थी। कभी-कभी सामूहिक रूप से राज्य छोड़ने की बात भी आती थी। वस्तुतः ये असहयोग के ही उदाहरण हैं। व्यक्तिगत असहयोग के उदाहरण भी मिलते हैं यथा-प्रह्लाद, नचिकेता अपने पिता से, मीरा बाई ने राणा से, चंदन बाला ने रथिक से, गीता में पाण्डवों ने असहयोग किया, ईसामसीह, सुकरात आदि के असहयोगात्मक प्रयोगों का इतिहास साक्षी है। असहयोग आंदोलन की अहिंसक शक्ति सशक्त मांसपेशियों पर, विनाशकारी शस्त्रास्त्रों पर और शैतानी जहरीली गैसों पर भरोसा नहीं रखती, अपितु नैतिक साहस, आत्मनियंत्रण और सुदृढ़ चेतना पर भरोसा रखती है। प्रत्येक मनुष्य के भीतर, चाहे वह कितना ही क्रूर और द्वेषी क्यों न हो, दया की एक जलती हुई ज्योति, न्याय के प्रति प्रेम और अच्छाई तथा सत्य के प्रति सम्मान की भावना विद्यमान रहती है; उसे असहयोग जैसी प्रक्रिया से जागृत किया जा सकता है। गांधी ने असहयोग की इस प्राचीन पद्धति का प्रयोग भारत की स्वाधीनता की समस्या को हल करने के लिए किया। यदि हम स्वतंत्र नर-नारियों की भाँति जीवन नहीं बिता सकते, तो हमें मर जाने में संतोष अनुभव करना चाहिए। भारत में अंग्रेजी राज्य भारतीय जनता के एक बहुत बड़े भाग की स्वेच्छापूर्ण और वास्तविक सहमति के आधार पर टिका हुआ है। यदि यह सहयोग न रहे तो यह शासन समाप्त हो जाएगा। एतद् रूप चिंतन की निष्पत्ति में असहयोग आंदोलन आजादी की लड़ाई का अभेद्य अस्त्र बना। गांधी ने दृढ़ता पूर्वक कहा-मेरा दृढ़ विश्वास है कि अहिंसात्मक असहयोग निर्बल का ही बल नहीं, बल्कि बलवानों का भी खास बल है। वह सर्वव्यापी सिद्धांत है। जान में हो या अनजान में हम रात-दिन इस पर अमल करते हैं।........'क्वेकर' लोगों का इतिहास अहिंसात्मक असहयोग का जगमगाता उदाहरण है। भारत में वैष्णवों का इतिहास भी इस सिद्धांत की पष्टि करता है। ये लोग जो काम कर सके हैं, सारी दुनिया उसे कर सकती है। अहिंसात्मक असहयोग भारत को उसके मनुष्यत्व की याद दिलानेवाली चीज़ है। भले ही करोड़ों लोग एक साथ इस बात में श्रद्धा न रखें। हथियार उठाने के लिए भी कौन करोड़ों तैयार बैठे हैं? करोड़ों तैयार हो भी नहीं सकते। अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके होंगे, तो वे करोड़ों की लाज रखेंगे और उनमें प्राण फूंकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी मेरे लिए अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप | 279
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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