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________________ पूर्ववृत्त अहिंसा का प्रायोगिक स्परूप मनीषी द्वय की अनुभव चेतना से जुड़े सत्य का निदर्शन है। उनसे पूर्व अहिंसानिष्ठ प्रयोग मात्र आध्यात्मिक उत्थान अथवा वैयक्तिक शुद्धि के लिए प्रयुक्त किये जाते थे उनका सामूहिक जन-जीवन में परिवर्तन की प्रविधि के रूप में प्रयोग महात्मा गांधी व आचार्य महाप्रज्ञ का विश्व मानव के लिए अपूर्व उपहार है। अहिंसा के सनातन मूल्य को कसौटी पर कसकर व्यवहार में प्रतिष्ठित करना मनीषियों की अहिंसा निष्ठ चेतना का सबूत है। वैज्ञानिक युग में कोई भी प्रविधि तभी अस्तित्ववान् बन सकती है जब उसे वैज्ञानिक आधार प्राप्त हो। दोनों मनीषियों ने अहिंसा को अपने जीवन की प्रयोगशाला में परीक्षण और परिणामों को समीक्षण पूर्वक व्यापक आयाम दिया। अहिंसा मात्र प्राणवध विरति ही नहीं है अपितु जीवन परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया भी है। एतद् विषयक मनीषियों द्वारा प्रयुक्त, प्रतिपादित प्रायोगिक मंतव्यों का विमर्श चतुर्थ अध्याय में इष्ट है। महात्मा गांधी ने अहिंसा के प्रयोग पक्ष को अहिंसक आंदोलन से जोड़कर जन-जन में जागृति पैदा की। विशेष रूप से देश की आजादी के संदर्भ में अहिंसा को फौलादी हथियार के रूप में अपनाने का दृढ़ मनोबल उनकी अटूट अहिंसक आस्था का प्रमाण है। अपनी आस्था को असीम बनाने की प्रक्रिया में अहिंसा को प्रायोगिक रूप में प्रयुक्तकर इतिहास को नई दिशा दी। उन्होंने यह साबित किया कि हिंसा के दावानल को अहिंसा के अमृत कणों में शीतल करने की क्षमता है। इतना ही नहीं व्यक्ति से राष्ट्र तक के परिवर्तन का अनंतबल अहिंसा में समाया है। इस विश्वास को भारतीय आजादी के संदर्भ में गांधी ने साकार कर दिखाया। आचार्य महाप्रज्ञ ने स्वतंत्र भारत की जनता के नैतिक चारित्रिक उत्थान हेतु अहिंसक प्रयोग को संस्कार परिवर्तन एवं व्यक्तित्व निर्माण की मौलिक प्रक्रिया के रूप में प्रतिष्ठित कर अहिंसा के सनातन मूल्य को जन-जीवन से जोड़ा। विकास की पृष्ठभूमि में संवेदनशीलता के विकास को अनिवार्य बतलाते हुए विभिन्न प्रयोग सुझाये। 'सव्वभूयप्प भूयस्स सम्मं भूयाहि पासओ'-सब जीवों को अपने तुल्य समझो। 'आयतुले पयासु'-सब आत्माओं को अपनी आत्म तुला से तोलों। इत्यादि विभिन्न अनुप्रेक्षाओं के प्रयोग से व्यक्ति का दृष्टिकोण बदलता है और उसमें दैविक गुणों का संचार होता है। जीवन मूल्यों का प्रायोगिक प्रशिक्षण शिक्षा के साथ जोड़कर महाप्रज्ञ ने परिवर्तन की प्रक्रिया को सुगम बनाया है। वर्तमान के संदर्भ में बढ़ते हुए आतंकवाद, उग्रवाद और हिंसा के घिनौने कारनामों के चलते अहिंसक उपचारात्मक प्रयोगों की मूल्यवत्ता स्वतः प्रमाणित है। अपेक्षा है दोनों मनीषियों द्वारा निर्दिष्ट प्रयोगों की समन्वित प्रस्तुति एवं व्यापक समाचरण की। पूर्ववृत्त / 271
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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