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________________ समाप्त कर दी जाती है। सैकड़ों कन्याएँ अपनी उपेक्षा और स्वयं को माता-पिता की चिंता का कारण समझते हुए आत्महत्या का रास्ता भी अपना लेती हैं। यह एक बहुत बड़ी त्रासदी है। समय रहते इस विषय में समाज सचेत नहीं हुआ तो मानव जाति अपने लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर लेगी। प्रकृति का संतुलन जब भी गड़बड़ाता है, कोई न कोई बड़ा संकट जरूर खड़ा होता है। आश्चर्य यह है कि समाज के चिंतनशील लोग भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह उनकी अर्तव्यथा का चित्रण है। समाधान स्वरूप हृदय परिवर्तन प्रविधि का व्यापक प्रशिक्षण सुझाया और उसके प्रयोग करवायें। अहिंसा यात्रा के अधिशास्ता ने गरीब से गरीब तबके के लोगों से लेकर राजनीति में सक्रिय व्यक्तियों से सामूहिक एवं व्यक्तिशः संपर्क साधा और उनकी समस्याओं का उचित समाधान किया। उनके द्वारा निर्दिष्ट संतुलित विकास का चतुष्कोण-आर्थिक, भौतिक, नैतिक और आध्यात्मिक, अहिंसक समाज निर्माण में योगभूत बन सकता है। क्रियान्वयन हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा अर्थ शास्त्री, समाजशास्त्री, मनोवैज्ञानिक, शिक्षाशास्त्री, वैज्ञानिक, धर्मगुरु सब एक साथ मंच पर बैठकर अर्थव्यवस्था का नया प्रारूप प्रस्तुत करें जिससे वर्तमान समस्याओं का समाधान संभव हो सके। समाज संबंधी अनेक पहलुओं पर अहिंसा यात्रा में चिंतन-मनन और समाधान सूत्र खोजे गयें। यद्यपि बीसवीं शताब्दी में एक नए समाज की रचना का प्रकल्प बहुत प्रखरता से सामने आया। समाजवादी समाज-रचना, अहिंसक-समाज-रचना, स्वस्थ-समाज-रचना आदि अनेक रचना-विधियों का सिद्धांत सामने आता रहा। पर कोई भी नई समाज-रचना आकार नहीं ले सकी। कारण मस्तिष्कीय रचना की जटिलता है। उसमें सोचने का प्रकोष्ठ अलग है और चिंतन को क्रिया में बदलने का प्रकोष्ठ अलग है। ज्ञानात्मक और क्रियात्मक दोनों प्रकोष्ठों में सामंजस्य किए बिना नए समाज की रचना के स्वप्न को आकार नहीं दिया जा सकता। नए समाज की रचना अथवा अहिंसक-समाज की रचना केवल पदार्थ परिवर्तन, केवल व्यवस्थापरिवर्तन के आधार पर नहीं की जा सकती। उसके लिए यौगलिक युग की चेतना अपेक्षित है। उस चेतना के सेतु है • आत्मानुशासन की चेतना . स्वावलम्बन की चेतना • संग्रहमुक्त चेतना • शासन मुक्त चेतना . सम्बन्ध मुक्त चेतना • वैर मुक्त चेतना . रोगातंकमुक्त चेतना • उपशांत राग-द्वेष की चेतना महाप्रज्ञ का मानना था कि किसी भी एकांगी दृष्टिकोण पर अहिंसक समाज की रचना नहीं की जा सकती। केवल हृदय परिवर्तन एकांतवादी दृष्टिकोण है। केवल दंडशक्ति भी एकांतवादी दृष्टिकोण है। हृदय-परिवर्तन और दंडशक्ति-दोनों के संतुलित योग के आधार पर अहिंसक समाज की रचना की जा सकती है। यह अनेकांतवादी दृष्टिकोण है। यथार्थ के धरातल पर जब समाज में नैतिक मूल्यों का उत्थान होगा, आध्यात्मिक तत्त्वों का समाज व्यवस्था में समावेश होगा और व्यक्ति 246 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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