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________________ 4. श्रम का उचित मूल्यांकन 5. नैतिकता का विकास 6. कर्तव्य की प्रेरणा 7. स्वार्थ का विसर्जन या स्वार्थ संतुलन। जिस समाज में इन तत्त्वों का उचित स्थान है, विस्तार है, प्रसार है, प्रतिष्ठा है, वही अहिंसक स्वस्थ समाज कहा जा सकता है फिर वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो? अहिंसा यात्रा अहिंसक समाज निर्माण में आचार्य महाप्रज्ञ का मौलिक योगदान है। व्यक्ति-व्यक्ति की अहिंसक चेतना जागने पर अहिंसक समाज का स्वरूप निष्पन्न होगा। जब तक व्यक्तिशः चेतना में परिवर्तन नहीं होगा स्वस्थ समाज संरचना का सपना अधूरा रहेगा। वे समाज परिवर्तन की पृष्ठभूमि में अहिंसा की तालीम को महत्वपूर्ण मानते थे। अहिंसक समाज निमार्ण के प्रयत्नों की कड़ी में हाल ही में संपादित सप्त वर्षीय (2001-8) अहिंसा यात्रा महत्वपूर्ण है। अहिंसा यात्रा का कारवां राजस्थान के रेतीले टीलों से चलकर दरिया के किनारे मोहमई मुंबई तक पहुँचा। इस बीच गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि अनेक प्रांतों में अहिंसा का सिंहनाद करता हआ देश की राजधानी दिल्ली में अपनी पहचान बनाई। जन साधारण से लेकर राष्ट्रपति के दिलों में अहिंसा यात्रा के शास्ता ने महात्मा गांधी की स्मृतियाँ जीवंत बनाई। लोग कहने लगे एक ऐसा फकीर संत, अहिंसा से ओतःप्रोत, मानवता की भाषा में बोलता है। समाज, राष्ट्र का व्यक्ति-व्यक्ति कैसे शांति का जीवन जीए, रहस्य बतलाता है। मानों इक्कीसवीं सदी का एक और गांधी फिर से स्वतंत्र भारत का नैतिक पथ प्रशस्त कर रहा है। लोगों की इस सोच का एकमात्र राज है-इस अवस्था में, जीवन के 8-9 वें दशक में भी व्यक्तिगत अनुकूलता को गौणकर कठोर यात्रा पथ का चयन मानव को शांति का संदेश देने के लिए महाप्रज्ञ ने स्वीकार किया। अहिंसा यात्रा के व्यापक उद्देश्य, कार्य और उपलब्धियों की विषद् विवेचना यथाशक्य 'प्रायोगिक स्वरूप' में पाठ्य सुलभ रहेगी। प्रस्तुत संदर्भ में मात्र उसके आंशिक सामाजिक स्वरूप की मीमांसा अभिष्ट है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा यात्रा में तीन शब्दों पर विशेष ध्यान केन्द्रित कर लोगों को समझाने का प्रयत्न किया-स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज और स्वस्थ अर्थव्यवस्था। व्यक्ति और समाज स्वस्थ बनें। समाज की छोटी इकाई परिवार है। बड़ी इकाई समाज है। परिवार में शांति कब रह सकती है? समाज में, महानगर में शांति कब रह सकती है? पूरे राष्ट्र में शांति कब रह सकती है? अगर सज्जन चरित्र का विकास नहीं होता तो फिर कभी शांति का वातावरण नहीं रहता। भय, आशंका, संदेह, कलह, लड़ाई-झगड़ा, आरोप-प्रत्यारोप और आक्षेप-प्रत्याक्षेप चलता रहेगा और आदमी रोते-रोते एक दिन मर जाएगा और बात समाप्त हो जाएगी। अहिंसा के द्वारा कैसे समाज में शांति का वातावरण बनें और कैसे सज्जन चरित्र का विकास हो? इस संदर्भ में उन्होंने व्यापक चिंतन किया और बताया अहिंसा के बिना सज्जन चरित्र का विकास नहीं हो सकता। अहिंसा के माध्यम से ही वह संभव हो सकता है। इसलिए अहिंसा के मर्म को समझने का प्रयत्न करें। अहिंसा के संबंध में हमारी समझ बहुत स्थूल है। अहिंसा के मर्म को नहीं समझ पा रहें हैं। उसकी गहराई को समझ नहीं पा रहे हैं। हमने अहिंसा यात्रा में अहिंसा के सैंकड़ों 244 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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