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________________ विकास है। समाज की आचार-संहिता उसके बिना पल्लवित नहीं हो सकती। अध्यात्म की आचारसंहिता उसके बिना बन नहीं सकती। अध्यात्म का पहला बिन्दु अहिंसा है और चरम बिन्दु भी अहिंसा है। 22 अहिंसा महाप्रज्ञ के अनुसार अध्यात्म जगत् और समाज की आचार-संहिता, दोनों के विकास की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। सुसंगठित समाज रचना के मौलिक पहलू की आधार भित्ति का चित्रण किया-अहिंसा के बिना, सत्य और अपरिग्रह के बिना समाज नहीं बनता। ___ अहिंसा विकास का पहला तत्त्व है-भावना का परिवर्तन। हिंसा के अनेक कारण हैं उनमें एक बड़ा कारण है-भावना, एक प्रकार की धारणा का न्यास। आदमी-आदमी को आदमी नहीं मान रहा है यह एक भावना है और जब तक इस भावना का परिवर्तन नहीं होता तब तक इस सामाजिक मूल्य का विकास नहीं हो सकता।......अध्यात्म के आचार्यों ने इस भावना-परिवर्तन के लिए कुछ शब्द दिए-'आत्मौपम्य,' 'आत्म तुला', 'सब जीव समान,' सब जीव अपनी आत्मा जैसे हैं।' ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और गंभीर अर्थ की सूचना देने वाले हैं। इस भावना के अभाव में जातीय विद्वेष पनपा, सांप्रदायिक विद्वेष और राज्य का सीमागत विद्वेष पनपा। यदि यह भावना विकसित होती कि सब जीव समान हैं मेरी आत्मा के जैसी ही दूसरे की आत्मा है, जैसी सुख-दुःख की अनुभूति मुझे होती है, वैसी ही सामने वाले व्यक्ति को होती है, तो यह जातीय और साम्प्रदायिक आक्रोशविद्वेष कभी नहीं पनप पाता। वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला जाये तो गंभीरता नजर आयेगी। रंग के आधार पर जाति के आधार पर धारणाओं के आधार पर भी विद्वेष पनपा है। एक संप्रदाय वाला एक वर्ण विशेषवाला दूसरे सम्प्रदाय वाले दूसरे वर्ण वाले को हीन मान रहा है और अपने आपको उच्च प्रमाणित कर रहा है। ये सारे विद्वेष इस आधार पर पनपे हैं कि अहिंसा का सूत्र था मानव जाति की एकता का, उसे भूला दिया गया। _ 'मनुष्य जाति एक है'-इस मूल्य की प्रतिष्ठा अनेक समस्याओं का एक समाधान है। कुछ लोगों ने इस दिशा में प्रयत्न किए इसमें सर्वाधिक उल्लेखनीय प्रयत्न है महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के। उन्होंने इन सारे विद्वेषों को मिटाने और अहिंसा के प्रति आस्था उत्पन्न करने का अथक प्रयास किया, परन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है, घटनाएं स्वयं प्रमाण हैं कि वह प्रयत्न एक सीमा तक सफल हुआ, किन्तु व्यापक स्तर पर सफलता अभी भी बाकी है। पर, सामाजिक धरातल पर यह सच्चाई है जब-जब संघर्ष, अशांति, विवाद, उग्र बने वहाँ ध्यान तत्काल समझौते की ओर जाता है। जब पंजाब की समस्या उग्र बनी पूरे राष्ट्र का ध्यान केन्द्रित हो गया कि आतंकवाद समाप्त होना चाहिए, हिंसा की उग्रता अब नहीं चलनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि आदमी हिंसा चाहता नहीं, करता है। वह चाहता अहिंसा है, चाहता शान्ति है किन्तु उन्माद आता है और उन्माद में वह हिंसा, अशांति कर डालता है। यह बात समझ में आनी चाहिए कि समाज का मूल्य अहिंसा ही हो सकता है और इसी आधार पर समाज बना है। वह नहीं होता तो समाज बनता ही नहीं। एक आदमी दूसरे आदमी को खाने और काटने को तैयार रहता। किन्तु सबसे पहला समझौता यही हुआ कि भाई! तुम भी अपनी सीमा में रहो और मैं भी अपनी सीमा में रहूँ और हम दोनों साथ-साथ जीएँ, समाज बनकर जीएँ। काल के लम्बे फासले से आदमी अहिंसा की इस बात को भूल-सा गया है। अतः सम्यक् उपचार हेतु अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 237
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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