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________________ अर्थार्जन ही उनका लक्ष्य बन जाता है। आदमी के दिल-दिमाग पर अर्थ बहुत अधिक हावी हो गया है। अर्थ का साम्राज्य इतना विस्तृत हो गया कि इससे अब कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा है। आज बाजार में, कोर्ट, कचहरी और न्यायालयों में, राजनीति में, सामाजिक संदर्भो में, मंदिर और मस्जिदों में भी इसकी घुसपैठ हो गई है। परिवर्तन का एक मात्र उपाय है-अहिंसा की चेतना का जागरण। करुणा, संवेदना अथवा त्याग की चेतना का जागरण।16 नैतिकता की प्रतिष्ठा में प्रामाणिकता और इच्छा परिमाण महत्वपूर्ण है। 'अहिंसा का अर्थशास्त्र' अब एक ज्वलंत विषय बन गया है। आज का जो अर्थशास्त्र है, वह अहिंसा को नहीं, हिंसा को बढ़ाने वाला है। जरूरत है ऐसे अर्थशास्त्र की जो अहिंसा पर आधारित हो। आज के अर्थशास्त्र की मूल धारणा है इच्छा बढ़ाओ, उत्पादन बढ़ाओ, इससे विकास होगा। अहिंसा के अर्थशास्त्र में इच्छा को बढ़ाने की नहीं, बल्कि इच्छा के परिसीमन और अल्पीकरण की बात होगी। यह संयम का अर्थशास्त्र होगा। आचार्य महाप्रज्ञ के सान्निध्य में 'इकोनोमिक्स एंड नॉन वायलेंस' पर कई सेमिनार आयोजित हुए हैं।17 व्यक्तिगत स्वामित्व के संदर्भ में उनके विचार थे कि अहिंसक समाज का सदस्य व्यक्तिगत धन कितना रखे, यह संख्या निर्धारित करना बड़ा जटिल है। इसका सरल सूत्र यह हो सकता है-जितनी आवश्यकता उतना संग्रह। अहिंसक समाज का सदस्य श्रमिक या बौद्धिक होने से पहले संयमी होगा। अतः वह अवास्तविक आवश्यकताओं का अंबार खड़ा नहीं करेगा। उसका संग्रह दो नियामक तत्त्वों से नियंत्रित होगा1. अर्जन के साधनों की शुद्धि 2. विसर्जन। __अहिंसक समाज में साधन-शुद्धि का साध्य से कम मूल्य नहीं होगा। अतः अहिंसक समाज का सदस्य अर्जन के साधनों की शुद्धि का पूर्ण विवेक रखेगा। वह व्यवहार में प्रामाणिक रहेगा। प्रामाणिकता के संदर्भ होगें. किसी वस्तु में मिलावट कर या नकली को असली बताकर नहीं बेचेगा। तौल-माप में कमी-बेशी नहीं करेगा। चोर-बाजारी नहीं करेगा। राज्य-निषिध वस्तु का व्यापार व आयात-निर्यात नहीं करेगा। • सौंपी या धरी (बन्धक) वस्तु के लिए इनकार नहीं करेगा। अर्जन के साधनों की शुद्धि रखते हुए उसे जो प्राप्त हो, वह केवल उसके लिए ही नहीं होगा। अहिंसक समाज की आवश्यकता व्यक्तिगत संयम के द्वारा नियन्त्रित होगी। उसका सदस्य अतिरिक्त अर्थ का विसर्जन कर देगा। विसर्जित अर्थ सामाजिक कोष के रूप में संग्रहीत होगा। समाज-कल्याण के लिए उसका उपयोग होता रहेगा। महाप्रज्ञ के ये विचार महात्मा गांधी के आर्थिक न्यासिता संबंधी विचारों से मेल खाते हैं। आर्थिक प्रशिक्षण सूत्र स्वस्थ समाज का अपरिहार्य अंग आर्थिक स्वस्थता है। आर्थिक स्वस्थता संपोषक सूत्रों के प्रशिक्षण पर उन्होंने बल दिया. वो निम्न हैं अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 235
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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