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________________ है। उसे अधिक प्रभावशाली किया जाए तो कठिनाइयों को पार करने का द्वार अपने आप खुलता है। अहिंसा का प्रयोग आर्थिक गुत्थी को सुलझाने में सफल हो सकता है। प्रश्न है अर्थ के सम्यक् दर्शन का। उनकी सोच में समाज में या व्यक्ति में न अर्थ का अभाव और न अर्थ का प्रभाव होगा। दोनों वांछनीय नहीं है। किन्तु अर्थ की मात्र उपयोगिता होगी। यह अर्थ का सम्यक् दर्शन है।103 इस दर्शन के आधार पर समाज में अहिंसक अर्थशास्त्र का विकास किया जा सकता है। ऐतिहासिक संदर्भ में देखें तो भगवान महावीर ने आर्थिक पहलू को अध्यात्म की मुहर लगाकर सामाजिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया था। इसकी पृष्ठभूमि में महावीर ने अहिंसाव्रती के लिए दो सूत्रों का प्रतिपादन किया-(1) अल्प आरम्भ एवं (2) अल्प परिग्रह। महाप्रज्ञ ने इन सूत्रों को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुति देकर आर्थिक विचारों को समृद्ध बनाया है। उनका यह विश्लेषण है कि अल्प आरम्भ का आशय लघु व्यवसाय/लघु उद्योग है और अल्प-परिग्रह का आशय आवश्यकतापूरक व्यक्तिगत स्वामित्व हो सकता है। अहिंसक समाज में महाआरंभ (वृहत् व्यवसाय या वृहत् उद्योग) और महापरिग्रह (विपुल संग्रह) व्यक्तिगत नहीं होंगे। उनका समाजीकरण दंडशक्ति के आधार पर नहीं, किन्तु विसर्जन के आधार पर होगा। महा-आरम्भ और महा-परिग्रह को आज की भाषा में केन्द्रित अर्थ व्यवस्था और केन्द्रित सत्ता कह सकते हैं। जहाँ परिग्रह अल्प है, वहाँ हिंसा भी अल्प है जहाँ परिग्रह विपुल है, वहाँ हिंसा भी बड़ी है। विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था में पहली बात यह है कि संपदा व्यक्ति-व्यक्ति के पास पहुँचे। वह कहीं केन्द्रित न हो। समूचे समाज के पास संपदा पहुँचे। साथ ही विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था अहिंसा के अति निकट है। अध्यात्म का सामाजिक रूप है-लोकतन्त्र और लोकतन्त्र में विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था पर यह अध्यात्म या धर्म का व्यावहारिक प्रतिफलन है। वर्तमान में इस सच्चाई को व्यवहार के स्तर पर उपेक्षित किया गया है और इस आदर्श को भूलाने के परिणाम स्वरूप केन्द्रित-व्यवस्था के दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। भ्रष्टाचार, पक्षपात, गैर-जिम्मेदारी, काम-चोरी आदि समाज में व्याप्त हो रहे हैं। जनता का स्वावलंबन, उसकी स्वायत्तता और अन्याय के प्रतिकार की शक्ति कुंठित कर दी गयी। जनता को शराब, जुआ, व्यभिचार, खेल-तमाशों आदि में फँसाकर निर्बल बनाया गया ताकि वे सिर न उठा सकें। ___ ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की दृष्टि से विज्ञापन तथा टीवी. रेडियो, अखबार आदि के जरिये लोगों में अधिकाधिक भोग की लालसा जगाई जा रही है, यह जानते हुये भी कि वह कभी पूरी नहीं की जा सकती क्योंकि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है और पृथ्वी पर साधन सीमित है। एक ओर असीम इच्छाएँ दूसरी ओर ससीम साधन। इन दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने का रहस्य अध्यात्म के सनातन सिद्धांत संयम में छुपा है। संयम या अपरिग्रह सनातन मूल्य है। संसार के सब धर्मों ने अपरिग्रह को, अर्थात् संचय न करने को और वस्तुओं पर मलकीयत की भावना न रखने को प्रधानता दी है। अपरिग्रह और संयम केवल व्यक्तिगत साधना का विषय नहीं है, सामाजिक मूल्य भी है। कथन की पुष्टि में गांधी के मन्तव्य को उद्धृत किया 'मनुष्य को अपनी वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति से संतोष मानना चाहिये और उस मामले में स्वावलंबी होना चाहिये। इतना संयम वह नहीं बरतेगा तो अपने को बचा नहीं सकेगा।105 आर्थिक संदर्भ में तथ्यों की प्रस्तुति सामयिक है। महाप्रज्ञ ने इस बात पर बल दिया कि 'अहिंसक समाज में अर्थ और सत्ता का मूल्य सर्वोपरि नहीं होगा। उसमें सर्वोपरि मूल्य होगा मानवता का।' मानवता के हित संपादन की दृष्टि से दोनों 230 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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