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________________ की कोई हिम्मत नहीं करता था। अहिंसा का विकास हुए बिना दो आदमी अच्छी तरह से साथ में नहीं रह सकते, इसलिए अहिंसा हर आदमी के लिए जरूरी है। परिवार संगठन की उपादेयता के विषय में उनका मौलिक चिंतन है। मनुष्य की तीन बड़ी अपेक्षाएं हैं-'आश्वास, विश्वास, विकास। इनकी संपूर्ति में परिवार संगठन पैदा हुआ।' बीमारी, बुढ़ापा, असहाय अवस्था में परिवार आलंबन भूत बनता है। एक परिवार में दस लोग साथ रहते हैं, साथ में जीते हैं. कारण है विश्वास। कभी किसी पति ने यह परीक्षा नहीं कराई कि मझे पत्नी भोजन परोस रही है, कहीं जहर तो नहीं दे रही है। लेकिन बड़े-बड़े लोग भोजन करते हैं, कहीं कोई जहर तो नहीं मिला दिया। अविश्वास का वातावरण रहता है। परिवार में विश्वास होता है तभी सुखद वातावरण रहता है। संदेहावस्था में विकास भी अवरूद्ध हो जाता है। पारिवारिक माहौल व्यक्ति को विकास की ऊँचाइयाँ प्रदान करने में अहं भूमिका अदा करता है। परिवार के वातावरण को प्रभावित करने वाला एक और घटक-संबंध विच्छेद या तलाक। इस संबंध में महाप्रज्ञ के सामयिक विचार है। आज तलाक के मामले बहुत ज्यादा सामने आ रहे हैं। कारण है वैवाहिक जीवन की कसौटी का अभाव। मुनि जीवन और गृहस्थ जीवन दोनों में अनुकूल, प्रतिकूल स्थितियाँ आती है। महावीर ने एक मुनि के लिए बाईस परीषहों का विधान किया। विवाह करने वालों के लिए परीषहों की सूची क्यों नहीं बनाई गई ? उनके सामने भी एक कसौटी होती-वैवाहिक बंधन में बंधने जा रहे हो। इन परीषहों को सहने की क्षमता हो और सहन करने का संकल्प हो, तभी विवाह करो। यह होना चाहिए था, यह मानदंड या कसोटी सामने होती तो शायद जीवन को सुखमय बनाने की दृष्टि प्राप्त हो जाती। शिक्षा और व्यापार की दक्षता के लिए नए-नए कोर्स आ रहें हैं। क्या अब विवाह के पूर्व वर और कन्या के लिए दाम्पत्य जीवन को सुखी और सफल बनाने का कोर्स नहीं होना चाहिए? जैसे विवाह के पूर्व जन्म कुंडली का मिलाना होता है, क्या वैसे ही दोनों के इमोशन, उनकी रूचियों, आदतों, मनोवृतियों और स्वभाव का भी मिलान नहीं होना चाहिए? क्या इस बात का प्रशिक्षण नहीं मिलना चाहिए कि वैवाहिक जीवन को किस तरह शांतिपूर्ण एवं खशहाल बनाया जा सकता है? केवल धन-संपत्ति के आधार पर रिश्ता जोड़ा, पहले से कोई प्रशिक्षण नहीं दिया तो उसका परिणाम तलाक और संबंध विच्छेद के रूप में सामने नहीं आएगा?72 इस त्रासदी से उबरने का उपक्रम होना चाहिए। विवाह से पूर्व लड़के-लड़की के वास्तविक गण मिलान हेतु प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। उनकी दृष्टि में प्रशिक्षण बहुत जरूरी है। लक्ष्य बनाएं कि जीवन को सार्थक बनाना है, जीवन को शांति के साथ जीना है। उन्नत जीवन मूल्यों को जीवन में स्थान देना है। जीवन भी तो एक साधना हैं। कर्मवाद की भाषा में क्रोध, अहंकार, माया, छल-कपट, लोभ-इनको शांत करने की साधना करना है। लक्ष्य स्पष्ट है और साथ में साधना का संकल्प है तो फिर जीवन शांतिपूर्ण व्यतीत हो सकता है। चिंतनपूर्वक ऐसी व्यवस्था बनाएं कि घर परिवार में भी संयम का प्रशिक्षण चले। पारिवारिक समस्या के प्रति महाप्रज्ञ कितने सहृदय रहे यह प्रस्तुत कथन से प्रकट होता है। परिवार प्रबंधन प्रबंधन के वर्तमान सूत्र हैं-समता, न्याय और करुणा। पारिवारिक संदर्भ में इन्हें उद्धृत करते हुए महाप्रज्ञ ने बताया-जिस परिवार में न्याय नहीं हैं, समता और करुणा नहीं हैं वह अच्छा नहीं हो सकता। 216 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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