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________________ अहिंसा की प्रयोगशाला-परिवार मानव जीवन संबंधों के सहारे अस्तित्ववान और विकस्वर बनता है। संबंधों की मधुरिमा व्यक्तित्व निर्माण का अहं घटक है। व्यक्ति सुखी जीवन का सपना देखता है, पर उसको साकार वही कर सकता है जिसने अपने इर्द-गिर्द के वातावरण को अहिंसा की परिमल से महाकाया है। घर-आंगन का पारिवारिक माहौल अहिंसा की परिमल से सुवासित हो तो वही व्यक्ति के लिए देवालय, जिनालय और शिवालय बन जाता है। व्यक्ति की जीवन बगिया को सरसाने वाला घटक है परिवार। उसका सौहार्दमय-प्रेमपूर्ण वातावरण व्यक्ति की मानसिक शांति का सेतु बनता है। अहिंसा के व्यापक संदर्भ की पहली प्रयोगशाला परिवार है। महात्मा गांधी, आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा के विशद् चिंतन की पृष्ठभूमि में पारिवारिक अहिंसा के पहलू को नजर अंदाज नहीं किया। मनीषियों के इस विषय में सारगर्भित विचार देखे जाते हैं। 'अहिंसा का अर्थ है प्रेम का समुद्र, वैरभाव का सर्वथा त्याग' इस विराट् स्वरूपा अहिंसा का प्रथम प्रयोग पारिवारिक परिवेश से शुरू होता है। इस संदर्भ में गांधी के विचार मौलिक हैं। उनका यह मानना था कि जहां व्यक्ति सुख-दुख का अधिकांश समय बिताता है उस परिवार का वातावरण तो सौहार्दपूर्ण होना ही चाहिए। यह तभी संभव है जब अहिंसा का प्रयोग घर-परिवार में किया जाये। 'अहिंसा की बारहखड़ी तो कुटुम्ब में ही सीखी जा सकती है। अगर हम यहाँ उत्तीर्ण हो गये, तो फिर सब क्षेत्रों में उत्तीर्ण हो सकेंगे, यह मैं अनुभव से कह सकता हूँ। क्योंकि अहिंसक मनुष्य के लिये तो सारा जगत् एक कुटुम्ब है।'67 इस कथन में अनुभूति का आलोक है। प्रारम्भिक जीवन में गांधी अपनी अर्धागिनी कस्तूरबा के प्रति बड़े कठोर थे पर, जैसे-जैसे उन्होंने अहिंसा के अर्थ गाम्भीर्य में अवगाहन किया तब अपनी इस कमजोरी का अनुभव हआ और कस्तुरबा के प्रति अपना रवैया अहिंसक बनाया। इससे उनका दांपत्य जीवन सहज बना। साथियों को भी इसकी प्रेरणा दी और उन्हें अपने प्रयत्न में सफलता भी मिली। इन विचारों को गति देने वाला आचार्य महाप्रज्ञ का अभिमत है। __ परिवार वस्तुतः अहिंसा का प्रयोग स्थल है। अकेले में अहिंसा का प्रयोग नहीं होता। अहिंसा का प्रयोग होता है समूह में। जहाँ एक व्यक्ति हो वहां हिंसा और अहिंसा का प्रश्न व्यवहार के धरातल पर उठता ही नहीं। अंतर्जगत में हो सकता है, व्यवहार में नहीं। परिवार एक छोटी-सी इकाई है। वह अहिंसा की सुन्दर प्रयोगस्थली बन सकती है। यदि अहिंसा का भाव परिवार में नहीं पनपता तो साथ रहने की बात ही नहीं आती। दस, बीस या पचास आदमी एक साथ रहते हैं, एक होकर रहते हैं, एक परिवार बनाकर रहते हैं, इसका अर्थ है कि उन्होंने अहिंसा 214 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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