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________________ शक्ति का विकास यहाँ तक करना होता है कि किसी भी धर्मग्रंथ में वर्णित अच्छाई को ग्रहण कर सके। जो विराट दृष्टि से देखना चाहते हैं, वे देख सकेंगे कि कुरान शरीफ में ऐसे सैकड़ों वचन हैं जो हिन्दुओं को मान्य हों; भगवद्गीता में ऐसी बातें लिखी है कि जिनके खिलाफ मुसलमान को कोई भी एतराज नहीं हो सकता। कुरान शरीफ का कुछ भाग मैं न समझ पांऊ या कुछ भाग मुझे पसंद न आये, इस बजह से क्या मैं उसे मानने वाले से नफरत करूं? कदापि नहीं। यही अहिंसक का आदर्श पथ होता है। आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसा और अहिंसक के धर्म को अभेदोपचार की दृष्टि से देखते-अहिंसा के लिए शरीर-बल से कहीं अधिक आत्म-बल की अपेक्षा है। मानसिक कमजोरी आई; छिपाने-दबाने की बात आई कि अहिंसा नौ दो ग्यारह हो जाती है। अहिंसक के सामने आगे बढ़ने का एक लक्ष्य होना चाहिए। उसके बिना वह आत्म-बल बटोर नहीं सकता। अतः अहिंसक सरलता से बोलता है, सरलता से चलता है और सरलता से करता है। अहिंसक की प्रत्येक क्रिया सहज भाव से निष्पन्न होती है उसमें लुकाव-छिपाव, कुटिलता को स्थान नहीं रहता। अहिंसक का धर्म ही उसके लक्ष्य को निर्धारित करता है। __आम व्यक्ति से भिन्न अहिंसक की भूमिका का चित्रण किया गया क्योंकि अहिंसक की भूमिका परमार्थ की होती है। वह परमार्थ को आगे कर स्वार्थ से लड़े। वह सोचे-ये पौद्गलिक वस्तुएँ बिगड़ने वाली हैं, नष्ट होने वाली हैं। उपयोग होगा तो भी बिगड़ेंगी, उपयोग नहीं होगा तो भी बिगड़ेंगी। तब फिर आसक्ति क्यों? यह सोचकर उनकी चिन्ता से मुक्त रहने का प्रयत्न करता है। एक ओर अनासक्ति के विकास का आदर्श तो दूसरी ओर प्रतिक्रिया विरति का प्रयत्न अहिंसक के जीवन को निखारता है। अहिंसक प्रतिक्रिया विरति को अपना आत्म धर्म समझता है। महाप्रज्ञ के शब्दों में अहिंसक इसलिए अच्छा व्यवहार नहीं करता कि दूसरा मेरे साथ अच्छा व्यवहार कर रहा है। वह बुरा व्यवहार करने वाले के प्रति भी अच्छा व्यवहार करता है। सूत्रात्मक शैली में प्रस्तुति दी . अहिंसक प्रतिबिम्ब का जीवन जीना नहीं चाहता।। . अहिंसक प्रतिक्रिया का जीवन जीना नहीं चाहता।। . अहिंसक प्रतिध्वनि का जीवन जीना नहीं चाहता। किसी ने अच्छा व्यवहार किया, इसलिए मैं उसके साथ अच्छा व्यवहार करूँ-यह सौदा है, विनिमय है। अहिंसक बुराई को जानता हुआ भी दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करता है। भगवान् महावीर जानते थे कि चंड कौशिक पैरों पर डंक मार रहा है, फिर भी उस पर अकृपा की दृष्टि नहीं हुई। दूसरी ओर लोग पूजा करने आए, उन पर भी वही दृष्टि रही। यह उत्कृष्ट उदाहरण है अहिंसक के आत्म धर्म प्रयोग का। यह समताप्लावित व्यवहार का अपूर्व संदेश है। अहिंसक की चेतना से करुणा का अजम्न स्रोत बहता है। उसे जीवन के प्रत्येक कर्म में देखा जा सकता है। करुणा शून्य जीवन स्व-पर दोनों के लिए खतरनाक बन सकता है। उसके अभाव में व्यक्ति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है। इसके पदचिन्ह यत्र-तत्र देखे जाते हैं। उदाहरण के तौर पर-आजकल गांवों में दूध शुद्ध मिल जाता है पर शहरों में तो दूध भी नकली आता है सिंथेटिक दूध, जिसमें कितने तरह के जहर मिले रहते हैं। इस तरह का कार्य करने वाले कितना नुकसान कर रहे हैं। आदमी-आदमी के प्रति अन्याय करे, स्वार्थवश अन्धा बन जाए, यह अहिंसक मानव के लिए अच्छा नहीं है। अहिंसक करुणाद्र होगा निष्करुण नहीं। अहिंसक की मर्यादा क्या है? वह हिंसा की जलती ज्वाला में क्या करें? इस पहेली को बुझाते अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति / 199
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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