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बल, शस्त्र और पौद्गलिक शक्ति के सहारे पशुता का साम्राज्य स्थापित होता है और मनुष्य अपनी गुणवत्ता को भूलकर कर्तव्यच्युत हो जाता है। आधुनिक विश्व की यही समस्या है। समाधान के आलोक में मनीषियों की अहिंसा संकल्पना मौलिकता से संपृक्त है। मनुष्य का उज्ज्वलांश प्रदीप्त हो वह अहंकार, स्वार्थ, भौतिक आकांक्षा से ऊपर उठकर अपने व्यक्तित्व का विसर्जन विराट के कल्याण में समर्पित करें। इस सत्य को अहिंसा के केनवास पर साबित करने का बीड़ा मनीषियों ने उठाया और सफलता की मिसाल कायम की। उसकी एक झलक 'अँधेरे में उजाला' में देखी जा सकती है।
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