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गांधी की अहिंसा एक सक्रिय बल है, जो निर्बल का अस्त्र नहीं, अपितु वीरों का अस्त्र है । 'यदि रक्त बहना ही है, तो वह हमारा रक्त हो । बिना मारे मरने के शान्त धैर्य की साधना करो । मनुष्य तभी स्वच्छन्द जी सकता है, प्रेम दूसरों को नहीं जलाता, स्वयं ही जलता है; वह मृत्यु के कष्ट में भी आनन्द अनुभव करता है।" यह अहिंसा की उच्च भूमिका का निदर्शन है। जब व्यक्तिगत जीवन में अहिंसा की उच्च साधना साध ली जाती है तब व्यक्ति के लिए प्रत्येक क्षण आनन्दमय बन जाता है। भावनात्मक संदर्भ में देखें तो गांधी अहिंसा को शक्तिशाली व्यक्ति का शस्त्र मानते थे। अहिंसा कायर और कमजोर व्यक्ति का हथियार नहीं है । महावीर, बुद्ध और कृष्ण सभी क्षत्रिय थे, मगर ये सभी अहिंसा के उपासक, अनुपालक थे । आचार्य महाप्रज्ञ के विचार गांधी की विचार धारा के संवादी हैं। उन्होंने अहिंसा की असीम शक्ति को प्रस्तुति देते हुए कहा-अहिंसा की शक्ति प्राणवान् है उसका अनुभव हर व्यक्ति को हो सकता है ।" अहिंसा की शक्ति का अनुभव तनावमुक्तावस्था में ही संभव है अन्यथा वह शक्ति कुंठित हो जाने से निष्क्रिय बन जाती | अहिंसा की शक्ति में आचार्य महाप्रज्ञ की जीवंत आस्था थी ।
अहिंसक के आभामंडल में पहुंचकर जन्मजात शत्रुता - वैर रखने वाले प्राणी भी वैरभाव को भूलकर पूर्ण मैत्री-सद्भावना का अनुभव करता है । यह अहिंसा की शक्ति का ज्वलंत उदाहरण है। ‘अहिंसा की शक्ति असीम है उसके सहारे ही मानवीय सभ्यता और संस्कृति का विकास संभव हुआ।' यथार्थ के धरातल पर अहिंसा की शक्ति से आदमी परिचित नहीं है और उस पर उसका विश्वास भी नहीं है। महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जैसे व्यक्तियों ने अहिंसा की शक्ति को दुनिया के सामने रखा। दुनिया ने उसको प्रत्यक्ष देखा, फिर भी न जाने क्यों विश्व अहिंसा की और उन्मुख नहीं हुआ। शायद ऐसा सोचकर कि अहिंसा की शक्ति का परिणाम बहुत देर बाद आता है और बंदूक से फैसला तुरंत फरत हो जाता है ।
बहुत आवश्यक है कि आदमी अहिंसा की शक्ति से परिचित बनें। जब तक उसकी शक्ति से परिचित नहीं होंगे, अहिंसा के प्रति विश्वास पैदा नहीं होगा । इसलिए पहला काम है अहिंसा की शक्ति से परिचित होना ।" इस कथन में बहुत बड़े सत्य का निदर्शन है कि अहिंसा ही एक ऐसी शाश्वत शक्ति है जिससे प्रकृति का कण-कण प्रभावित है। महाप्रज्ञ अहिंसा की शक्ति में अटूट आस्था रखते हुए भी प्रश्न खड़ा करते - अहिंसा के संबंध में 'क्वालिटी कन्ट्रोल' गुणवत्ता संवर्धन का । यह प्रश्न अहिंसा की अनन्त शक्ति के प्रायोगिक धरातल को पुष्ट करने की दृष्टि से उठाया गया है। इस शक्ति का जब तक व्यवहार में स्पष्ट अनुभव नहीं होगा तब तक संदेहास्पद स्थिति बनी रहेगी। इसका एकमात्र समाधान अहिंसा की शक्ति का प्रखर प्रयोग ही हो सकता है ।
गांधी की भांति महाप्रज्ञ ने अहिंसा को वीरों का पथ बतलाते हुए आर्ष वाणी को उद्धत किया है, 'पणयावीरा महावीहि' वीर ही अहिंसा का पालन कर सकता है। गांधी ने इस युग में उसे प्रत्यक्ष कर दिखाया। प्रायः लोग अहिंसा को कायरता के साथ जोड़ कर देखते हैं, लेकिन अहिंसा का कायरता के साथ कोई संबंध नहीं है । हिंसक आदमी तो बहुत कायर होता है । जबकि अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए विराट् शक्ति और मनोबल की जरूरत होती है।" अहिंसा की अजेय शक्ति के बाबत मनीषियों के विचारों में एक प्रवाह है जो निश्चित रूप से दिल और दिमाग को छूने वाला है ।
अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति / 193