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________________ अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति अहिंसा द्वारा व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर अमन-चैन की स्थापना की जा सकती है। यह अहिंसा के स्रष्टा-द्रष्टा द्वारा प्रस्तुत एक सच्चाई है। महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ ने इस सच्चाई को पकड़ा और इन क्षेत्रों में अहिंसा के स्वरूप की मीमांसा की। अहिंसा व्यक्ति से आरम्भ होकर परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व परिवेश में सुगमता से प्रतिष्ठित हो सकती है। अहिंसा जो केवल धर्म का तत्त्व विशेष अथवा आध्यात्मिक साधना का मंत्र मानी जाती थी उसे गांधी एवं महाप्रज्ञ ने जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रयुक्त कर मानव जाति के उत्थान का पथ-प्रशस्त किया। शांतिमय सुखद जीवन के लिए अहिंसा की अनन्य भूमिका को प्रस्तुत कर अशांत मानव को शांति का संदेश दिया। मनीषियों की उदात्त चिंतन शैली में अहिंसा का प्रवाह विभिन्न संदर्भो में अनुस्यूत है। उसका विमर्श यथा शक्य प्रस्तुत अध्याय में अभीष्ट है। सार्वभौम नियम अहिंसा एक सार्वभौम नियम है जो समस्त मानव जाति पर लागू होता है। ऐसा नहीं है कि इस नियम के द्वारा केवल ऋषि-मुनि ही परिचालित हो सकते हैं। हर कोई व्यक्ति अहिंसा की सुवास को प्राप्त कर सकता है। अहिंसा को देश काल-परिस्थिति से परे एवं मनुष्य जाति का नियम बतलाते हुए गांधी ने कहा-'अहिंसा मठ-मंदिर की ही चीज नहीं है, जो ऋषियों अथवा गुफाओं में रहने वालों के लिए हो। अहिंसा तो ऐसी है कि जिस पर लाखों आचरण कर सकते हैं-इसलिए नहीं कि उनके फलितार्थों का उन्हें पूर्ण ज्ञान है, बल्कि इसलिए कि वह मनुष्य जाति का नियम है। यह आदमी और पशु के बीच का अन्तर व्यक्त करती है।' अहिंसा की दिव्यता से अनुप्राणित मानव जाति ने विकास की ऊँचाइयों को छआ है। जो पश आज से चार सौ वर्ष पर्व की स्थिति में जैसा था आज भी वहीं है किसी तरह का विकास नहीं किया। विकास का मौलिक आधार अहिंसा है। ___अहिंसा सिर्फ व्यक्तिगत गुण नहीं, बल्कि सामाजिक गुण भी है। इसे दूसरे गुणों की तरह विकसित किया जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि समाज अपने आपस के कारोबार में अहिंसा का प्रयोग करने से ही व्यवस्थित होता है। अहिंसा को राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय व्यवहार में भी काम में लाया जा सकता है। गांधी की विशाल दृष्टि का प्रतीक यह कथन ‘मेरे लिए अहिंसा एक व्यक्तिगत धर्म ही नहीं, समग्र समाज के लिए एक राजनीति और आध्यात्मिक साधना है।'' उनका स्पष्ट अभिमत रहा अहिंसा एक ऐसी शक्ति है, जिसका सहारा बालक, युवा, स्त्री-पुरुष सब ले सकते हैं। बशर्ते 188 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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