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________________ योग स्फुरणा : आदि स्रोत प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ने महाप्रज्ञ को योग साधना की ओर प्रेरित किया। इस बात पर सहसा विश्वास होना कठिन है पर यह सच्चाई है। महाप्रज्ञ उच्च कोटि के योगीराज थे। उनकी यौगिक चेतना का साक्षात् प्रभाव संपर्क में आने वाले को उर्जस्वल बनाये बगैर नहीं छोड़ता। 'अभिशाप बना वरदान' की जीवंत अनुभूति के आलोक में महाप्रज्ञ की योग चेतना के जागरण की अद्भुत घटना घटी। प्रथम दृष्ट्या अप्रिय लगने वाला घटना प्रसंग कभी-कभी विकास की नई दिशाओं का द्वार खोल देता है। पृष्टभूमि में जागृत विवेक की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। योग में नियोजित करने वाले प्रसंग का चित्रण महाप्रज्ञ के शब्दों में- 'एक बार मुझे प्रतिश्याय हुआ और वह बिगड़ गया। एलोपैथी और आयुर्वेदिक इलाज कराए, पर कोई लाभ नहीं हुआ। स्थिति चिंतनीय बन गई। फिर प्राकृतिक चिकित्सा का योग मिला। मैं स्वस्थ हो गया। एक प्रेरणा जागी। लुई पूने को पढ़ा। प्राकृतिक चिकित्सा की बीसों पुस्तकें पढ़ीं। वहीं से मेरे योग जीवन का प्रारंभ हुआ। आसन और प्राणायाम के साथ-साथ ध्यान की रुचि भी जागृत हुई।' योग जीवन के आदि स्रोत की स्पष्ट प्रस्तुति महाप्रज्ञ की योगज उपलब्धि का सबूत है। साधना गति से प्रगति की ओर बढ़ती गयी। इसके विभिन्न पहलू विकास के मानक बनते गये। जिसका उल्लेख महाप्रज्ञ ने किया- 'मैंने ध्वनि चिकित्सा का भी प्रयोग किया। तीव्र स्वर में बीज मंत्रों की ध्वनि करने पर मैं कुछ हास्यापद भी बनता रहा। फिर भी कोई अन्तःप्रेरणा काम कर रही थी, मैं उस प्रयत्न को छोड़ नहीं सका। कालांतार में यह प्रयोग आचार्य महाप्रज्ञ की योग साधना का सेतु बन गया। एक घटना विशेष से जुड़ा प्रेरणा प्रसंग किस प्रकार विकसित होता गया और ताउम्र उसकी फलश्रुति से सभी को सराबोर बनता रहा है। योग संबंधी रहस्यों की खोज और निष्पत्तियाँ अध्यात्म जिज्ञासुओं का पथदर्शन युगों-युगों तक करती रहेगी। महाप्रज्ञ ने इस उपलब्धि का श्रेय प्राकृतिक चिकित्सा को दिया। उन्होंने माना है कि इस विधा के जरिये मुझे योग की गहराई में जाने का और अध्यात्म के आलोक से अभिस्नात होने का सौभाग्य मिला। योग के मौलिक प्रयोगों से चेतना पर आयी आवरण की पर्ते हटती गयी, अर्न्तदृष्टि का जागरण घटित हुआ। अतीन्द्रिय चेतना के स्फुलिंग अध्यात्म जगत् की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अतीन्द्रिय चेतना का प्रबोध महाप्रज्ञ की आत्म संपदा बनी। जिसके द्वारा महाप्रज्ञ ने मानव जाति का शांतिपथ प्रशस्त किया। अनेक महत्त्वपूर्ण रहस्यों की खोज योग स्फुरणा : आदि स्रोत / 175
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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