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________________ अनेक प्रकार के समाधान मिले, विकास का अभिनव मार्ग प्रशस्त हो गया। अनेक बुराइयों से बचना सुगम हो गया। __'बैला रा बाया मोती निपजै' उक्ति के अनुसार उचित समय पर बोया गया संस्कार-बीज व्यक्तित्व निर्माण में योगभूत बनता है। आचार्य कालूगणी ने कुछ ऐसे बीज समय पर मुनि 'नथमल' की जीवन भूमि पर बोये। उदाहरण के तौर पर एक प्रसंग का उल्लेख उपयुक्त होगा। एक दिन आचार्य कालूगणी ने किशोर मुनि 'नथमल' से पूछा-'धातुकोष सीखा या नहीं?’ नकारात्मक 'नहीं' उत्तर सुनकर प्रेरित किया-'उसे सीखना अभी शुरू करो, और साथ-साथ प्राकृत का आठवां अध्याय भी प्रारंभ कर दो।' विनय भाव से गुरु का आदेश स्वीकृत कर लिया। धातु कोश का ज्ञान महाप्रज्ञ की ज्ञान चेतना को जगाने एवं आगमों की अनंत गहराइयों को छूने में योगभूत बना। कालांतर में गुरू के इस आदेश को महाप्रज्ञ ने आशीर्वाद के रूप में रेखांकित करते हुए कहा-'अगर उस समय प्राकृत का अध्ययन नहीं होता तो आज आगम का दुरूह कार्य हाथ में नहीं ले पाते। गुरु के आदेश-इंगित को अहोभाव के साथ शिरोधार्य का वरदान मिला-अनवरत आगम बत्तीसी का संपादन। मुनि 'नथमल' की व्यक्तित्व निरमापक प्रत्येक क्रिया-कलाप पर आचार्य कालूगणी ध्यान केन्द्रित करते। गमन क्रिया बाह्य व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। व्यक्ति की चाल-चलन से उसके व्यक्तित्व न किया जा सकता है। इस दृष्टि से बाल मुनि 'नथमल' की चाल (गति) समुचित न हो यह नजरअंदाज कैसे किया जाता? इस दिशा का प्रशिक्षण स्वयं कालूगणी ने किया। महाप्रज्ञ ने इस सच्चाई को स्वीकारा-मेरी गति व्यवस्थित नहीं थी। मैं चलता तो मेरे पैर इधर-उधर पड़ते। दोपहर के समय जब एकान्त होता, तब पूज्य कालूगणी कहते-तुम चलो। मैं चलता, तब उनका निर्देश मिलता-पैर ठीक ढंग से रखो। न जाने कितनी बार कालूगणी ने चलने का अभ्यास कराया। मैं मानता हूँ, यह मुझे गतिमान् बनाने का ही प्रयत्न था। कथन के संदर्भ में उपलाक्षणिक तौर पर सम्यक् गतिमान चरणों ने लाखों लोगों को अध्यात्म के राजपथ पर गतिमान बनाया, यह उस गति प्रशिक्षण का सुपरिणाम है। गुरु से मिले वात्सल्य और करुणा के प्रसाद को मुनि नथमल ने श्रद्धा और समर्पण भाव से सहेजा और सतत् बढ़ते रहे। पूज्य कालूगणी ने मात्र संयम का संस्कार ही नहीं दिया अपितु जीवन के प्रत्येक क्षण को सार्थक करने की शक्ति भी दी। इस प्रेरणा-प्रोत्साहन के बदौलत एक अबोध बालक 'नथमल' में अनुपमेय व्यक्तित्व का निर्माण घटित हो गया। आचार्य महाप्रज्ञ का अनुपमव्यक्तित्व विकास की अनंत संभावनाओं का साक्षी भूत उपनय साबित हुआ। तुलसी का सुयोग ___ 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु साक्षात् महेश्वर' का साक्षात् अनुभव महाप्रज्ञ ने तुलसी की सन्निधि में किया। यह मात्र उपचार नहीं महाप्रज्ञ का भोगा हुआ सच था। मुनि नथमल को साधनामय जीवन का श्रीगणेश मुनि तुलसी के कुशल निर्देशन में करने का सौभाग्य मिला। सौभाग्य समय का संस्पर्श पाकर गुणित होता गया और एक दिन विकास के शिखर को छू गया। तलहटी से शिखरारोहण का श्रेय मुनि 'नथमल' ने आचार्य तुलसी को दिया। अनुशास्ता तुलसी के बिना महाप्रज्ञ के विराट् व्यक्तित्व की संकल्पना अधूरी होगी। आचार्य तुलसी का ही अपूर्व अनुशासन कौशल था जिसमें महाप्रज्ञ की महा-प्रतिमा का निर्माण निष्पन्न हुआ। कवि हृदय से निकली शेर की पंक्तियाँ सार्थक बनीं परिवर्तन एवं नव निर्माण / 163
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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