SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जल रह की हत्या नहीं करने की कसम उठवाई। इतना ही नहीं, 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस पर सरदार पटेल व नेहरू जी द्वारा दिल्ली आगमन के निमंत्रण को अस्वीकार करते हुए कहा-'जब बंगाल रहा है, हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे की हत्या कर रहे हैं और कलकता में फैले इस अंधकार में मुझे उनकी पीड़ा का आर्तनाद सुनाई दे रहा है, मैं रोशनियों से जगमगाती दिल्ली कैसे आ सकता हूँ।' स्पष्ट रूप से गांधी के लिए आजादी के उत्सव से अधिक महत्त्व था, हिन्दू-मुस्लिम सद्भावना की मिसाल को कायम करना। ___इससे कुछ भिन्न हिन्दू-मुस्लिम एकता-सद्भावना के मौलिक प्रयत्न आचार्य महाप्रज्ञ ने किये। इसकी एक मिसाल है कि तमाम प्रतिक्रियाओं की परवाह किये बगैर आचार्य महाप्रज्ञ का गोधरा कांड से पीड़ित गुजरात प्रांत में जाने का निर्णय। अहिंसा यात्रा की उपयोगिता वहाँ साबित हुई। उन्होंने अहिंसक नीति से हिन्दू-मुस्लिम सभाओं को संबोधित किया और इस सच्चाई से अवगत करवाया-'हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। इससे किसी का भी भला नहीं होगा।' प्रभावी प्रयत्नों से दोनों समुदायों के बीच सौहार्द और समन्वय का वातावरण बना। दोनों मनीषियों के एकतासद्भावना मूलक आदर्शों के आलोक में व्यापक रूप से सकारात्मक प्रयत्न किये जाये तो निश्चित रूप से अच्छे परिणाम निकल सकते हैं। गांधी ने तत्कालीन परिस्थितियों को समझा और भारतीय संस्कृति के अनुरूप देश की आजादी का स्वप्न संजोया और सफलता का वरण किया। उन्होंने अपूर्ण अहिंसा को स्वीकार किया कि यदि हम पूर्ण रूपेण मन-वचन-कर्म से अहिंसक होते तो उसका प्रभाव विश्व व्यापी होता। पर हमारी आधीअधूरी अहिंसा ने भी हमें मंजिल तक पहुंचाया है यह अहिंसा शक्ति का ही चमत्कार है। आचार्य महाप्रज्ञ के पारदर्शी चिंतन से अहिंसा की नव्य धारा प्रस्फुटित हुई। उन्होंने अहिंसा के चिंतन की पृष्ठभूमि में हिंसा के कारणों का उल्लेख किया-'भूख एक ऐसी समस्या है, जिससे व्यक्ति को उग्रवादी और अपराधी बनने का मौका मिलता है।... नक्सलवाद, उग्रवाद और अपराध का एक मुख्य कारण है भूख। जहाँ लाखों लोग वैभव का जीवन जीते हैं, जबकि करोड़ों लोगों को खाने को पूरी रोटी भी नसीब नहीं होती, वहाँ प्रतिक्रियात्मक हिंसा से बचा नहीं जा सकता।' इस यथार्थ आकलन पर लोगों का ध्यान केन्द्रित किया। बड़ी संख्या में आचार्य महाप्रज्ञ के अनुयायी वर्ग एवं राष्ट्रपति डॉ. अब्दल कलाम जैसे वैज्ञानिक देश के प्रथम नागरिक ने फ्यरेक (FUREC) के माध्यम से स्वरोजगार, आत्मनिर्भरता के कार्यों को बढ़ावा दिया और भूख की समस्या का सही समाधान खोजने के उपक्रम जारी कियें। अपेक्षा है इस क्षेत्र में समीक्षण पूर्वक बहुआयामी कार्यक्रमों को व्यापक बनाने की। गांधी ने आत्मशुद्धि पूर्वक स्वस्थ समाज संरचना पर बल दिया। गांधी उपवास (अनशन) करते, तब भी उनका स्पष्ट नजरिया बना रहता कि मैं अपनी आत्म-शुद्धि करने के लिए ऐसा पुनीत कार्य कर रहा हूँ। आचार्य महाप्रज्ञ ने पूर्ण संयमी जीवन जीते हुए अहिंसा की जो साधना की, वह महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर प्रशिक्षण के जरिये सामाजिक धरातल पर अहिंसा के विकास की संभावनाओं को उजागर किया है। वर्तमान के संदर्भ में त्याग-बलिदान एवं साधना के समन्वयात्मक स्वरूप को आधुनिक पारवेश में प्रस्तुति दी जाये और उसका व्यापक प्रसार किया जाये, निश्चित रूप से उसके सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। गांधी और महाप्रज्ञ की संयम प्रधान जीवन-शैली पर (xiv)
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy