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________________ महाप्रज्ञ के प्रेरणा स्रोत 'गगनं गगनाकारं सागरं सागरोपमम्' सूक्ति महाप्रज्ञ के जीवन चरित्र से कृतार्थ बनीं । 'आचार्य श्री महाप्रज्ञ की आज संपूर्ण विश्व को आवश्यकता है। उनका जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित है । वे बालक, युवा और वृद्धावस्था के समन्वयक हैं । आप साधु जरूर हैं पर जीवन की हर समस्या को जानते हैं और अपने आध्यात्मिक तेज से उनका समाधान प्रस्तुत करते हैं।' गुजरात विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री धीरूभाई शाह के कथन का संवादी मंतव्य - ' आप हमारी भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। आपके समान आज कोई दूसरा ऋषि-मुनि नहीं दिखलायी देता । आप न केवल आध्यात्मिक गुरू हैं, योगी हैं, अपितु कवि, दार्शनिक, वैज्ञानिक, ज्योतिर्विद आदि भी हैं। हजारों साल में ऐसी कोई महान प्रतिभा जन्म लेती है। इसका लाभ सबको मिलना चाहिए। आपको भारतीय ज्ञान विज्ञान को बढ़ाने के लिए विदेशों की यात्रा करनी चाहिए। आपने दुनिया को बहुत कुछ दिया है। 46 योजना आयोग के सदस्य डॉ. दीनानाथ तिवारी का है। ऐसे अनेकानेक भावों को आलोकित करने वाले मानवता के मसीहा का निर्माण जिन फौलादी अभिप्रेरणाओं हुआ उसका संज्ञान महत्वपूर्ण है। । दिव्य गुणों के संवाय का नाम है- आचार्य महाप्रज्ञ । समर्पण, सहिष्णुता, सरलता, सहृदयता, सह और साधना उनका स्वभाव था । अन्तर्दृष्टि एवं अतीन्द्रिय चेतना के स्वामी का पारदर्शी व्यक्तित्व और कर्तृत्व इक्कीसवीं सदी के नाम अभिनव आलेख है । उनके आध्यात्मिक सौंदर्य की एक झलक विधायक सोच, आदर्श साहित्य सृजन एवं दार्शनिक रहस्यों से अनुस्यूत सुगम प्रवचन शैली में अनगूँजित हुई। महाप्रज्ञ का जीवन निर्मल, निश्छल, पवित्र एवं समुज्ज्वलता का पर्याय रहा है। उनका आत्म परिचय उन्हीं के शब्दों में • बाहरी वस्तुएँ मुझे खींच नहीं सकती, इसलिए में सरस हूँ । अपनी कमजोरियों को देखता हूँ, इसलिए में पवित्र हूँ । सबको आत्मतुल्य समझता हूँ, इसलिए में अभय हूँ। " इस मंतव्य में महाप्रज्ञ का विराट् व्यक्तित्व प्रतिबिम्बित है । इस शिखरारोहण यात्रा में मूल्य उनका है जिसके सहारे उन्होंने मंजिल की मीनारों को छूआ । • • मैं अकिंचन हूँ, इसलिए महान हूँ । मेरी कामनाएं सीमित हैं, इसलिए मैं सुखी हूँ । इंद्रियों पर नियंत्रण है, इसलिए मैं स्वतंत्र हूँ । कथनी-करनी में समानता है, इसलिए मैं ज्ञानी हूँ । • महाप्रज्ञ के प्रेरणा स्रोत / 153
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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