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________________ कवि में देखा उतना किसी अन्य में नहीं देखा। ये सारे बोल गांधी के हृदय से निकले, श्रीमद्जी के प्रति भक्ति के सुमन हैं। अनेक प्रसंगों पर स्वीकारा की उनके जीवन को अत्यधिक प्रभावित करने वाले एक मात्र श्रीमद् रायचन्द्र जी हैं। 'श्रीमद् राजचन्द्र जयन्ती' के प्रसंग पर ईस्वी सन् 1921 में गांधी ने कहा-'बहुत बार कह और लिख गया हूँ कि मैंने बहुतों के जीवन में से बहुत कुछ लिया है। परन्तु सबसे अधिक किसी के जीवन में से मैंने ग्रहण किया हो तो वह कवि (श्रीमद्जी) के जीवन में से है। दया धर्म भी मैंने उनके जीवन में से सीखा है।....खून करने वाले से भी प्रेम करना यह दया धर्म मुझे कवि ने सिखाया है।'40 आंतरिक अहोभाव से निष्पन्न ये बोल श्रीमद्जी के प्रति गांधी की अटूट आस्था, समर्पण एवं विनय भाव के प्रतीक हैं। किसी से कुछ ग्रहण करना एक बात है पर उसे अहोभाव से प्रकट करना सर्वथा भिन्न बात है। पर, गांधी सदैव उनके प्रति कृतज्ञ बनें रहे यह उनका अपना वैशिष्ट्य था। अहिंसा, अनुकंपा, करुणा, आत्म-साक्षात्कार के जो विशिष्ट गुण उनमें विकसित हुए, वह श्रीमद्जी का आध्यात्मिक प्रतिबिम्ब कहा जा सकता है। निश्चित रूप से गांधी के अहिंसा संबंधी विचार बहुत उन्नत थे और वे जैन अहिंसा से मिलते-जुलते भी थे। इसका एक कारण श्रीमद्जी का अहिंसा प्रधान जैन जीवन भी रहा होगा। स्वार्थ वृत्ति से ऊपरत करुणामय व्यवहार की छाप गांधी के हृदय पर सदैव अंकित रही इसके अनेक उदाहरण उनके जीवन में मिलते हैं। आध्यात्मिक-नैतिक बोध पाठ / 147
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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